आज कल मौसम में परिवर्तन होने से काम करने का बिलकुल भी मन नही करता.कल ऐसे ही ऑफिस में खाली खाली सा,अंगडाई लेते हुए बेमन से कंप्यूटर के कीबोर्ड पर अंगुलियाँ फिरा रहा था.संयोग से उसी दिन बॉस अमरीका से आये थे. पता नही था,अचानक बॉस हमारे केबिन में आये ..हम तो भैया बिलकुल नींद में मस्त स्टीव बकनर की तरह ये भी ठीक से नही देखा की द्रविड़ आउट है या इन .पास में कोई पोंटिंग भी नही था जिससे पूछते की क्या है??
खैर,बोस अन्दर आये ,और पूछा की "राज ४ प्रोजेक्ट्स थे २ तो फाईनल हो गए ,अभी बचा कितना? पता नही वो नींद में थे की मैं .उनको ये भी नही पता ४ में से २ गए तो बचा कितना.मेरा तो ये मन किया की बोल दे की "सिर ४ में से २ गया तो कुछ नही बचा.
ऐसे ही एक बार बादशाह अकबर अपने दरबारियों के से पूछा की "बारह में से चार गए तो क्या बचा"?
कई दरबारियों ने बेसाख्ता बोला "आठ" .
बादशाह से ने उचित उत्तर न पाकर बीरबल से वही प्रश्न दोहराया .
तब बीरबल ने कहा - जहाँपनाह,बारह में से चार गए तो कुछ भी नही बचा.
साबित करो-अकबर ने कहा.
"जहाँपनाह ,वर्ष में बारह महीने होते है .उन बारह महीनों को हम जाडा, गर्मी ,बरसात के रूप में चार-चार महीनों में बाट लेते है.अगर इसमे से बरसात के चार माह निकाल दिए जाएँ तो कुछ भी नही बचेगा.कूंये , तालाब सूख जायेंगे .फसलें लह-लहा न पायेंगी -सब कुछ सूख जायेगा.इसीलिए मैंने कहा की कुछ भी नही बचेगा...एक बार फिर बाजी मार ले गए बीरबल.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
वाह, हमें तो ज्ञात ही न था कि क्रिकेटीय गणित के नाम से बकनरी पद्धति का नया गणित प्रकाश में आया है। धन्यवाद जी यह बताने के लिये।
बादशाहों और बड़े लोगों को हमेशा टेढ़ी बात करने की आदत थी। हमारे बुजुर्ग भी टेढा ही पूछते थे। अरे अकबर सीधे पूछते कि 12 महीनों से चार मौसम हटा दिए जाएं तो क्या बचेगा। हमारे बॉस भी ऐसी ही फालतू झांकी दिया करते हैं। वैसे, इनके जमाने लद गए। अब सीधी और साफ-साफ बात ही करने का दौर है।
राज भाई, रोचक लिखा है आपने।
सही है!!
Post a Comment