Sunday, January 13, 2008

ममता जी ने सही किया या गलत.?

पुरस्कारों और विवादों में हमेशा चोली दामन का साथ रहा है.२००७ की पुरस्कृत ब्लागर ममता जी ने पुरस्कार लेने से मना कर दिया.जैसा की उन्होने कहा की-.–

हमने ब्लॉगिंग शुरू की थी तो सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए न कि किसी पुरस्कार प्राप्ति के लिए।जिस दिन हमें इस पुरस्कार के बारे मे पता चला था उस दिन हमे ख़ुशी और आश्चर्य दोंनों हुआ था।और जहाँ ख़ुशी और आश्चर्य होता है वहां दुःख भी होता है । ख़ुशी हमें इस लिए हुई थी कि हमारे ब्लॉग को इस लायक समझा गया कि उसे पुरस्कार के लिए चुना गया और आश्चर्य इस बात का था कि हमारा ब्लॉग कैसे और क्यूँ चुना गया और दुःख इस बात का हुआ जिस तरह हमारा ब्लॉग चुना गया ।

अब राम जाने की वो महिला होने के नाते अपनी इगो की वज़ह से पुरस्कार ठुकरा दिया या इस गन्दी राजनीति से आहत हुईं. इसके इतर ममता जी एक ससक्त ब्लोगर रहीं है ,खाश कर के मेरी पसंदीदा ब्लोगर .इनके लेखन में कोई बनावटीपन नहीं रहता बिलकुल सही और सटीक लिखतीं है.जैसा की पुरस्कारों का एलान करते हुए जो पोस्ट लिखी गई थी, उनके चिट्ठे को चुनने के पीछे जो भी कारण दिए गए थे, उससे बढ़िया और कोई आधार नहीं हो सकता था ।हाँ अगर ममता जी यह सोचतीं है कि महिला के नाम पर कृपा के रूप में दिया गया है तो अलग बात है.

कुछ लोगो का मानना है की यह एक घटिया राजनीती का नतीजा है,जैसा की पंकज जी ने कहा की "काश बाकी विजेता भी निज स्वार्थो से उठकर ममता जी की तरह साहस दिखा पाते। यदि ऐसा होगा तो सम्मान की राजनीति और सम्मान की दुकान चलाने वाले दोनो ही जड से उखड जायेंगे। दरअसल यह सब मील का पत्थर साबित होगा और आगे की पीढी याद करेगी कि कैसे खुले मन वाले ब्लागरो ने टुच्चे साहित्य माफिया को धूल चटायी थी।कैसे सब कुछ बढिया चल रहा था छोटे से ब्लाग परिवार मे इस गन्दी सम्मान राजनीति के आने से पहले। मैने पहले ही चेताया था और इसीलिये आवेदन ही नही किया था। आशा है आगे ऐसे सम्मानो से पहले दुकानदार दस बार सोचेंगे।""
खैर आप के क्या विचार हैं.ममता जी ने सही किया या गलत.?

3 comments:

ghughutibasuti said...

कोई विशेष विचार नहीं हैं । यह उनका निजी मामला है व निजी निर्णय भी है । लोग उन्हें पहले भी पढ़ते थे अब भी पढ़ते रहेंगे ।
घुघूती बासूती

डा० अमर कुमार said...

मेरी मानें, तो उन्होंने बहुत ठीक किया है ।
इन सम्मानों का मापदंड अब तक धूमिल है.
और पुरस्कार के प्रलोभन में लिखने वाले कुछ ही होंगे । यदि कोई प्रतियोगिता होती, तो हम खम ठोंक कर कह सकते थे 'अब आयेगा मज़ा खेल का,
बहूत जान बाकी है हममें ! ' किंतु रेवड़ीबाजी ना बाबा ना ।

Anonymous said...

purusakar mile ya nahi kya farak parhata hai achchha likhenge to log padhenge hi.