Saturday, September 29, 2007
डोंट डिस्टर्ब मी -सोने दो !
हम ही नही ,हमारे देवी देवता का भी मिजाज़ कुछ मिल जुला है ,जब भी असुरों का आक्रमण होता था ,तो देवता भागकर गुफा पहाडों में छिपते नजर आते थे , कहा जाता है कि भगवान् विष्णू ४ महिने तक सोते ही रहते है ,बुरा हो शेषनाग का जो उसकी गर्दन दर्द करने लगती थी और थोडा सा सिर हिला देने पर भगवान् कि नींद टूट जाती है और धरती पर भूकंप ,आंधी ,सुनामी जैसी आपदा आन् पड़ती है । रावण क्यों हारा ,कुम्भकरण जो बेचारा मस्त सो रह था ,उसके ऊपर हाथी घोड़े और नगाड़ा बाजवा के उठा दिया ,क्या हुआ ,आख़िर रावण का नाश ही हुआ ना !!!
यह बात तो साफ है कि जब आदमी सोया रहता है ,दूसरों का बुरा नही करता ,किसी को तकलीफ नही पहूँचाता ,नेता लोग हमारे असली पाथ प्रदर्शक है ,जो संसद के सभागार में निद्रा में पडे-२ देश के विकास का सपना देखते है । भई !!आख़िर ,जो सपने देखता है वही सपने दिखा भी सकता है .बस सपने देख के ही तो विजन २० पुरा होगा ना ,सपने से ही तो हम तरक्की करेंगे ।
Saturday, September 22, 2007
फतवा- आदमी बन के दिखाओ तो कोई बात बने ।
मिश्रा पिछले दिनों आए दो अजीबोगरीब फतवों ने अजीब सी स्थिति पैदा कर दी है। ये फतवे किसी ऐरे-गैरे की ओर से नहीं बल्कि देश के अछे मौलवियों की ओर से जारी किए जा रहे हैं। देश के बड़े मुफ्तियों में से एक इज्ज़ात आतियाह ने कुछ ही दिन पहले नौकरीपेशा महिलाओं द्वारा अपने कुंआरे पुरुष को-वर्करों को कम से कम 5 बार अपनी छाती का दूध पिलाने का फतवा जारी किया। और वहीँ एक और p पीने का फतवा !!!!!! ,
इस फतवे में यह कहा गया है कि पैगंबर मोहम्मद के साथी उनका पेशाब पीते थे और ऐसा करना पुण्य का काम है। यह फतवा जारी करते हुए मौलवी अली गुमआ ने हदीथ का हवाला दिया। गुमआ का कहना है कि जिस तरह मां अपने बच्चे के मल-मूत्र पर नाक-भौं नहीं सिकोड़ती क्योंकि वह उससे बेइंतहा प्यार करती है , उसी तरह हज़रत मोहम्मद का थूक , पसीना , बाल , पेशाब और रक्त भी पाक हैं। प्रमुख इस्लामिक संस्था दारुल-उलूम देवबंद ने फोटोग्राफी को शरीयत कानूनों के खिलाफ करार देते हुए इस पर पाबंदी लगाने वाला एक फतवा जारी किया है। इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के धर्मगुरुओं ने पर्यटन मंत्री नीलोफर बख्तियार के खिलाफ तालिबानी शैली में एक फतवा जारी किया है और उन्हें तुरंत हटाने की मांग की है।
हमारा भारत जो दुनिया भर में ,"अनेकता में एकता " के नाम से जाना जाता है ,कुछ ऐसे ही धर्म गुरुओं के चलते जो सिर्फ खुद खुदा -भगवान् बनना चाहते है ,अपने जन प्रचार को बदावा देने के लिए ऐसी घटिया हरकते करने लगे है .हमारा प्यारा भारत जहा हम साथ साथ ईद ,दिवाली ,होली ,मुहर्रम मन्नाते है ,जहा हम एक दुसरे के सुख दुःख मे एक साथ एक साथ सामिल होते है , आख़िर ऐसा फतवा जो भगवान् -खुदा को बाठ ले ( गणेश पूजा में शामिल होने के कारण सलमान के खिलाफ फतवा ),ये तो हानिकारक ही है ना .इन धरम गुरुओं को कौन समझाए ,खुदा ,भगवान् तो एक ही है ।
मार्क ट्वेन का मत है कि भारत मानव वंश का उद्गम, अनेक भाषाओं तथा बोलियों की जन्म-स्थली, इतिहास की माता, पौराणिक एवं अपूर्व कथाओं की दादी और अनेक परम्पराओं की परदादी है। मानव इतिहास की अत्यंत बहुमूल्य उपलब्धियाँ भारत के खजाने की ही देन हैं। फिर हम ऐसा फतवा होने दुनिया कि नजर में क्यों अपनी एकता खो रहे है ,
धर्म का संबंध मनुष्य के आंतरिक विश्वास और उसके बाह्य नैतिक आचरण — सदाचार – से ठहरता है । यदि विभिन्न धर्मों के मूल सिद्धांतों की विवेचना करें तो धर्म का अर्थ उच्चतर मानव मूल्यों को धारण करना ठहरता है जिसे किसी शायर ने बहुत सरल और सार्थक भाषा में परिभाषित किया है :
आदमी बन के दिखाओ तो कोई बात बने ।
यो तो आसान है हिंदु या मुस्लमा होना। ।
आज भी मुझे याद है ,हमारे पदोश मे "राबिया " थी ,मेरी छोटी बहन जो कि मुस्लिम थी ,उसकी विदाई में मैं इतना रोया था ,जितना कि मैं अपनी सगी बहन कि शादी में नही रोया था ,आज भी राबिया कि पवित्र राखी मेरे हाथो को सुसोभित करती है ,आज भी मुज्जफर दादा कि पाक - कुरान कि आयतें याद है ,जो वो मुझे बचपन मे सुनाया करते थे ,आज भी जब हम अपने गाँव जाते है ,सबीना चाची हसते हुये गले लगा के बोलती है"राज " बेटा कमजोर हो गए हो ,खाने पीने मे लापरवाही करते होगे (चाहे मैं कितना ही स्वास्थ रहूँ ),आज भी वही ईद आती है ,जब हम और शेराज भाई एक ही चम्मच से सिंवायी खाते है .राबिया ,मुजफ्फर दादा जरा समझाओ इन धरम के ठेकेदारों को ,खुदा को क्यों बाटना चाहते है .क्यों दीवार ढाल रहे है ये हमारे बीच ,क्यों नफ़रत पैदा करना चाहते है .कितना दर्द होता है ,ये धरम के ठेकेदार नही समझेंगे .बस यही ख़्याल आता है ।
देख दहलीज़ से काई नही जाने वाली ।
ये बेईल्म सच्चाई नही जाने वाली ।
एक तालाब सी भर जाती है हर बारिश में ।
मैं समझता हूँ ये खाई नही जाने वाली ।
चीख निकली तो है होठों से ,मगर मद्धम है ।
बंद कमरों को सुनाई नही जानेवाली ।
"राज " परेशां बहुत है ,तू परेशां ना हो ।
इन खुदाओं कि खुदाई नही जाने वाली ।
आज सडको पे चले जाओ ,तो दिल बहलेगा ।
चांद गजलों से ये तनहाई नही जाने वाली .
Thursday, September 20, 2007
कालिया और लूट -मार सोफ्टवेयर
गब्बर कालिया और दो साथियों को रामगढ लूट -मार सोफ्टवेयर लाने के लिए भेजता है .
वो रामगढ़ पहूचते है ,और चिल्लाते है : "अबे ओ ! ठाकुर ! कहां है वो लूट -मार सोफ्टवेयर? लास्ट डेट तो कब का निकल गया ".
ठाकुर [ग़ुस्से में ]: "चिल्लाओ मत ! जाकर गब्बर से कह दो कि ठाकुर सोफ्टवेयर वालों ने पागल कुत्तों के लिए सोफ्टवेयरे बनाना बंद कर दिया है ।"
कालिया : "बहूत गरमी दिखा रहे हो ठाकुर ? कोई नए प्रोग्रामर हायर किये हैं क्या ?"
ठाकुर : "नज़र उठा के देख , कालिया , तेरे सर पर मेरे दो प्रोग्रामर कोडिंग कर रहे है ।"
कालिया ऊपर देखता है जय और वीरू को जो अलग अलग वाटर टैंक पेर लैपटोप ले कर बैठे है ।
Kaalia (हसते हुये ): "हां हां हां हां हां हां ... ठाकुर ने फ्रेशार (freshers) को हायर किया है ये लोग प्रोग्रामिंग करेंगे ?? इन को तो DOS कमांड्स भी ! नहीं आती ।"
वीरू(चिल्लाता है ): "चुप -चाप चला जा कुत्ते . हम लोग कोन्सुल्तैंत (consultant) हैं , कुछ भी कर सकते हैं ।"........। . और हम गूगल से कोड चुरा के कुछ भी कर सकते है .
जय कंप्यूटर पे कुछ टाईप कर्ता है ,और कहता है : "जाओ कालिया , गब्बर से कहना कि उसका सर्वर डाउन हो गया."
गब्बर के पास :
गब्बर : "कितने वायरस थे रे कालिया ?"
कालिया : "दो सरकार ."
गब्बर : "वो दो ! और तुम तीन एंटी - वायरस. फिर भी फिक्स नही कर सके ? क्या सोच के आये हो ? गब्बर बहूत खुश होगा ? इन्सेंतीव देगा , सेलरी बडायेगा ?
इसकी सज़ा मिलेगी ... बरोबर मिलेगी . (गब्बर चिल्लाता है ) "शाम्भा लैपटोप ला रे ".
"कितने सेस्सिओंस (session) हैं इस मशीन में ?"
शम्बा : "छे सरकार ."
गब्बर : "session ६ और प्रोग्रामर ३ . बहूत नाइंसाफी है .[लाग आउट - लाग आउट - लाग आउट ]. हाँ अब ठीक है ... अब तेरा क्या होगा कालिया ?"
कालिया : "सरकार , मैंने आपका कोड लिखा था ।"
गब्बर : "तो ले अब टेस्टिंग कर !" ...हां हां हां आहा हः आःहाहा हह्हा हां ।
Saturday, September 15, 2007
क्या होता है ये प्यार -भाई बताओ ना !!!!!
"हाय बेचारगी -ए -इश्क की उस महफिल में ।
सर झुकाए ना बने ,आंख उठाएँ ना बने" । ।
क्य होता है ये प्यार ,क्यों कोई किसी को इन्ना चाहने लगता है ,आख़िर क्यों??
बड़ी उम्मीदें थी कारे जहाँ मे इस दिल से मगर !
उसे तो तेरी तलब में खराब होना था ।
मैं सोचता रहा रात भर आख़िर ये कौन सा जज्ज्बा है ???????????????
यू तो इन्सान नए ज़मीन ,नए आस्मान की चाहत कर्ता है ,ये आरजू भी उसके लिए मुमकिन होती है । लेकिन !
जहाँ नयी कायनात उसके सामने आती है , उस जहाँ मे कदम रखते हुए काँप सा जाता हूँ । उसे एक अजीब stranger सी उलझन महसूस होती है । मुहब्बत भी कुछ ऐसे ही जज्बे का नाम है ,जहाँ हर रंग बदलने वाला होता है ,जहाँ आदमी सोचता कुछ और है ,और होता कुछ और है । किसी को दिल में बसा लेना ,फिर उसे अपने प्रेम-रूपी खयालों की अमराइयों में ढूद्ना , और रात दिन उसी के सपने देखना ,मसलन ! एक दुसरे का इंतजार , मिलने की बेचैनी ,जुदाई का गम ,ये खुसनशीबी की निशानियाँ बहुत कम खुश्नसीबो को मिलती हैं ।
"पहले इसमे एक अदा थी ,नाज़ था अंदाज़ था ।
रूठना अब तो मेरी आदत में शामिल हो गया ॥ "
हमारी चाहतें , हमारी मुहब्बतें , जो नामुमकिन दीवारो को तोड़कर एक हो जाती है , ऐसा मिलन एक मिशाल ही तो होता है .. जिसकी आगोश मे हमारी जिन्दगी क़ैद हो जाती है.अगर यह हमारे लिए सरफ़रोश है तो हमारा क़ैद होना उस मौसीकी की तरह होता है जिसे छेड़ कर दिल को अजीब सा सुकून मिलता है ...जिसे लफ़्ज़ों में नही बयाँ किया जा सकता , ....मगर जब वही क़ैद रिहाई बन जाती है तो जीना दुस्वार सा हो जाता है ,अपने महबूब अपनी मुहब्बत से बिछड़ जान एक दर्द भरा हादसा होता है ,इस हादसे की वज़ह चाहे जो भी हो मगर तड़पते सिर्फ दो दिल ही है ...बस यही है...
"वक़्त कितना खराब गुजरा है ।
लम्हा लम्हा अजाब गुज़रा है ,
रास्ते क्यों उदास लगते है ,
कौन खाना खराब गुज़रा है ,
जैसे सहरा से काफिला गुज़रे ,
यू इन आंखो से ख़्वाब गुज़रा है "। ।
अच्छा!!! अब रात काफी बीत चुकी है ,घडी ने अभी रात के २ बजाए है लिखता रहा तो ये प्रेम की परिभाषा खतम ही नही होगी क्यों की कागज़ कम पढ़ जाये ,स्याही खतम हो जाये पर भावनाएं तो कभी खतम नही हो सकती ,भावनाओं की लड़ी तो बनती ही जाती है ...खैर एक शेर अर्ज़ है ...
खुशबू जैसे वो मिले अफ़साने में ।
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में ,
शाम के साए उँगलियों से नापे है ,
चांद ने कीतनी देर लगा दी आने में,
दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है ,
किसकी आहट सुनता हूँ वीराने में ,
जाने किसका जीकर है इस अफ़साने में ,
दर्द मजे लेता है जो दोहराने में ॥
Thursday, September 6, 2007
दरिद्र नारायन कि दरिद्रता कब कटेगी ?
छेत्रो में काफी प्रगति के दर्शन होते हैं । अम्बानियों और मारनों की तरफ देखता हूँ तो सिर फख्र से ऊंचा उद जाता है कि मैं उस देस का वासी हूँ जो मालामाल है ,और जब दिनभर पत्थर कूट कर भी रात को पेटभर खाना बिना सोने वाले परिवार की तरफ देखता हूँ तो सिर शर्म से झुक जाता है ।
आज उद्योग फैल रहे हैं , निवेश बढ़ रहा है ,आर्थिक विकास दर ९% को पार कर रहा है और विदेशी मुद्र्रा का भण्डार बढ़ रहा है । यह सब हमारी तेजी से तार्रकी के सबूत हैं और बहुत हद तक श्रेय निजी छेत्र को जाता है ।
रिलायंस के सी .एम्.डी मुकेश अम्बानी का वार्षिक बेतन २४.५१ करोड़ रुपये प्रति वर्षा है । जबकि दुनिया मे अधिकतम औसत वेतन पैकेज २६ करोड़ है ।
आज भारत, यू .एस .ए और चीन के बाद वर्ल्ड कि तीसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था माना जा रह है । वर्ल्ड के २० सबसे बडे अमीरों मे तीन भारतीय है .केवल यू .एस .ए ही भारत से आगे है ।जीं .डी .पी कि दर ९% के पास पहूंच गयी है लेकिन इस विकास के बावजूद भी २६ करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीने पे मजबूर हैं .मतलब अभी हमारे देश कि एक चौथाई आबादी आर्थिक विकास से बंचित है ।यानी कि अभी हम आर्थिक विकास कि दृष्टि से काफी पीछें है । देश कि २०% आबादी कृषि पेर निर्भर है , लेकिन कृषि व्यवसाय अब फायदे का धंधा नही रहा । हर साल हजारो किसान आत्म हत्या करने पे मजबूर हो रहे है । हालत यह है कि २००४ में गोदाम भरे हुये थे आज ये इस्थिति है कि अनाज आयात करना पड़ रहा है ।
हमारा कहा विकास हो रहा है ,कैसे सपना पुरा होगा बिजान २० का । कारखानों मे काम करने वाला मजदूर अपनी दाल रोटी चलाने मे मजबूर है ,उसके बच्चे कूपोसड का शिकार हो रहे है ,कृषि और औद्योगिक उत्पादन में आयी भारी वृद्धि का लाभ एक विसेश वर्ग को ही पहूँचा है ,पुरे समाज को नही । भारत महान और सम्पन्न तभी कहलायेगा जब यहा हर आदमी को भर पेट खाना मिलेगा,सभी के सिर पे छत होगी ,सभी के लिए शिक्षा होगी ,सभी के लिए चिकित्सा सुविधा होगी। ये सभी मूलभूत चीजे आज उपलब्ध नही है , काफी गरीब आज भी दरिद्र नारायन कि दरिद्रता कटने का इंतज़ार कर रहे है .