Thursday, September 6, 2007

दरिद्र नारायन कि दरिद्रता कब कटेगी ?

स्वतंत्र भारत के ६० वर्षो के इतिहास पर दृष्टी डालें तो शिछा, स्वास्थ्य , कृषि और औद्योगिक आदि
छेत्रो में काफी प्रगति के दर्शन होते हैं । अम्बानियों और मारनों की तरफ देखता हूँ तो सिर फख्र से ऊंचा उद जाता है कि मैं उस देस का वासी हूँ जो मालामाल है ,और जब दिनभर पत्थर कूट कर भी रात को पेटभर खाना बिना सोने वाले परिवार की तरफ देखता हूँ तो सिर शर्म से झुक जाता है ।

आज उद्योग फैल रहे हैं , निवेश बढ़ रहा है ,आर्थिक विकास दर ९% को पार कर रहा है और विदेशी मुद्र्रा का भण्डार बढ़ रहा है । यह सब हमारी तेजी से तार्रकी के सबूत हैं और बहुत हद तक श्रेय निजी छेत्र को जाता है ।
रिलायंस के सी .एम्.डी मुकेश अम्बानी का वार्षिक बेतन २४.५१ करोड़ रुपये प्रति वर्षा हैजबकि दुनिया मे अधिकतम औसत वेतन पैकेज २६ करोड़ है
आज भारत, यू .एस . और चीन के बाद वर्ल्ड कि तीसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था माना जा रह हैवर्ल्ड के २० सबसे बडे अमीरों मे तीन भारतीय है .केवल यू .एस . ही भारत से आगे हैजीं .डी .पी कि दर % के पास पहूंच गयी है लेकिन इस विकास के बावजूद भी २६ करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीने पे मजबूर हैं .मतलब अभी हमारे देश कि एक चौथाई आबादी आर्थिक विकास से बंचित हैयानी कि अभी हम आर्थिक विकास कि दृष्टि से काफी पीछें हैदेश कि २०% आबादी कृषि पेर निर्भर है , लेकिन कृषि व्यवसाय अब फायदे का धंधा नही रहाहर साल हजारो किसान आत्म हत्या करने पे मजबूर हो रहे हैहालत यह है कि २००४ में गोदाम भरे हुये थे आज ये इस्थिति है कि अनाज आयात करना पड़ रहा है
हमारा कहा विकास हो रहा है ,कैसे सपना पुरा होगा बिजान २० काकारखानों मे काम करने वाला मजदूर अपनी दाल रोटी चलाने मे मजबूर है ,उसके बच्चे कूपोसड का शिकार हो रहे है ,कृषि और औद्योगिक उत्पादन में आयी भारी वृद्धि का लाभ एक विसेश वर्ग को ही पहूँचा है ,पुरे समाज को नहीभारत महान और सम्पन्न तभी कहलायेगा जब यहा हर आदमी को भर पेट खाना मिलेगा,सभी के सिर पे छत होगी ,सभी के लिए शिक्षा होगी ,सभी के लिए चिकित्सा सुविधा होगीये सभी मूलभूत चीजे आज उपलब्ध नही है , काफी गरीब आज भी दरिद्र नारायन कि दरिद्रता कटने का इंतज़ार कर रहे है .

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