नजर नवाज नज़ारा बदल न जाये कही।
जरा सी बात है मुँह से निकल न जाये कही,
वो देखते है तो लगता है नींव हिलती है ,
मेरे बयान को बंदिश निगल न जाये कही।
यों मुझको खुद पे बहुत ऐतबार है लेकिन ,
ये बर्फ आंच के आगे पिघल न जाये कही ।
तमाम रात तेरे मैकदे में मय पी है ,
तमाम उम्र नशे में न निकल जाये कही,
कभी मचान पे चढ़ने कि आरजू उभरी ,
कभी ये डर के ये सीढ़ी फिसल न जाये कहीं ।
ये लोग होमो हवन में यकीन रखते है
चलो यहाँ से हाथ जल न जाये कही । ।
हिन्दी
Wednesday, December 19, 2007
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