Monday, November 16, 2009

अधुरा प्यार-An Another Uncomplete Love Story

यू तो इन्सान नए ज़मीन ,नए आसमान की चाहत करता है ,ये आरजू भी उसके लिए मुमकिन होती है । लेकिन !जहाँ नयी कायनात उसके सामने आती है , उस जहाँ मे कदम रखते हुए काँप सा जाता हूँ । उसे एक अजीब सी उलझन महसूस होती है । मुहब्बत भी कुछ ऐसे ही जज्बे का नाम है ,जहाँ हर रंग बदलने वाला होता है ,जहाँ आदमी सोचता कुछ और है ,और होता कुछ और है ।किसी ने सच ही कहा है...कहते है प्यार किया नही जाता हो जाता है.प्यार एक खूबसूरत जज्बा है, जिसका सिर्फ एहसास किया जा सकता है, शब्दो मे बयान करना शायद सम्भव नही होगा.प्यार शब्द में सारी दुनिया समाई हुई हैं.एक मीठा एहसास जो जीवन में ताजगी भर देता हैं. प्यार आदमी को बहुत कुछ सिखाता हैं.किसी की आँख का आँसू आपकी आँखों में हो और किसी का दुख आपकी नींद उड़ा दे, किसी की हँसी आपके लिये सबसे कीमती हो और आप सारी दुनिया को भुला दे. यही तो प्यार के रंग हैं.प्यार एक ऎसी दुनिया है जो आपको सपनों की दुनिया का अनुभव कराती है? इस दुनिया में तड़प भी है, अपने साथी को पाने का जूनुन भी है, यहाँ पर दर्द भी है और खुशी भी है।

परसों शाम को काम का काफी बोझ उतार के(क्युकी सन्डे को ही मेरे पास काफी वक़्त होता है अपने पेंडिंग काम करने के लिए...) रात को ११ बजे ऑफिस से निकला ....मुआ ठण्ड की दस्तक ने लोगो को ९ बजे तक घर में घुसने के लिए मजबूर कर दिया है....ऊपर से ए नेचुरल कलामितीज़ शाम चार बजे के बाद ही धुंध दिखने लगती है (और इस मुए धुंध ने मेरे ऑफिस एम्प्लोयी की productivity भी कम कर रखी है.)....खैर!! जैसे ही गेट के बहार आया देखा की एक वयस्क लड़का और लड़की एक दुसरे की आगोश में आके रो रहे रहे थे...मै तो कुछ और समझ बैठा ....और अपनी नज़रें घुमा के अपने घर का राष्ता इख्तियार किया ....फिर थोड़ी सी सिसकने की आवाज़ मेरे कानो में आयी....और ना जाने क्यों मेरे पाँव अचानक ही उनके ओर डग भरने लगे...फिर मैंने एक द्वन्द भरी आवाज़ से बोला ""क्या रहे हैं आप लोग यहाँ ..रात के ११ बज चुके है आप लोग को इस वक़्त अपने घर में होना चाहिए "...लेकिन उधर से कोईप्रति -उत्तर नहीं मिला...अब मैं उनके और करीब पहुच चूका था..मुझे ये नहीं पता था की मै गलत कर रहा हूँ या सही ....लेकिन उनके काफी करीब था मै..दोनों बिलकुल सावधान की मुद्रा में खड़े हो गए...लेकिन उनके आसूंओ का सैलाब मेरी बेचनी बढा रहा था...मैंने पूछा क्या बात है ....कोई जवाब नहीं .........फिर मैंने पुरे गर्म लहजे में बोला की अगर आप लोग मुझे नहीं बताएँगे तो मैं यहाँ से नहीं जाऊंगा......न जाने क्यों उनको मेरे ये छोटे से शब्द अपने लगे ......और फिर उन लोगो ने पूरी बात बताई...

मैं यहाँ उन दो प्रेमियों का नाम नहीं लिखना चाहूँगा ..क्युकी मैं उनके पवित्र प्रेम को रुसवा नहीं करना चाहूँगा...लड़के की शादी इसी १९ नवम्बर को है..और वो किसी बैंक में अच्छे पद पर है...और लड़की भी किसी आई.टी. संस्था में कार्यरत है...लेकिन दोनों भिन्न-२ जाति से ताल्लुक रखतें है....और यही मुख्या वज़ह है की वो अपने प्यार को शादी जैसे पवित्र रिश्ते का नाम नहीं दे पा रहे है.....उन दोनों ने अपनी पूरी बात बताई ....मेरी तो अक्ल ही गम....कुछ समझ में नहीं आ रहा था की इन दोनों की मासूम मुहब्बत के लिए मैं क्या करूँ....क्युकी पहाड़ो की बुलंदियां तो हम लांघ सकतें है लेकिन समाज की हदें पार करना हमारे बस में नहीं..."""" इन दोनों के मुहब्बत के बीच समाज था....अफ़सोस! जिसका एक हिस्सा मैं भी हूँ....

सच में मुहब्बत वो शय है जो रूह को ख़ुशी देता है..लेकिन उससे भी जयादा गम....मेरी प्यार-मुहब्बत के बारे में सोच थोड़ी भिन्न है..क्युकी आजकल के लड़के-लड़कियों को बहुत जल्दी प्यार हो जाता है। दरअसल उनका यह प्यार कभी-कभी प्यार न होकर एक शारीरिक और मानसिक आकर्षण रहता है जिसका पता उन्हें शादी के कुछ महीनों के बाद ही हो जाता है। आजकल के ज्यादातर लड़के अच्छे फिगर वाली लड़के- लड़कियों को देखकर अपने प्यार का इजहार कर देते हैं। प्यार के बड़े बड़े वादे तो हर कोई करता है... लेकिन जीवनभर साथ निभाने वाले लोग बहुत कम होते है...खैर ....

अब भी मुझे उस लड़की की बातें मुझे बेचैन करतीं है....जो उस वक़्त अपने बिछड़ने वाले जिंदगी के सबसे अहम् व्यक्ति से बोल रही थी....'' तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम जीवनभर मेरी देखभाल करोगे... तुम तब तक मेरा साथ नही छोड़ोगें जब तक में यह दुनिया नही छोड़ देती... और आज तुम मुझसे पहले ही मेरे प्यार की दुनिया छोडकर जाना चाह रहे हो..... आखिर तुम ऐसा क्यों कर रहे हो...मम्मी-पापा को समझाओ ..मे तुम्हारे बगैर कैसे जी सकुगीं''.....सर , आप ही समझाओ इन्हें....मैं क्या समझाता ......एक ना-समझ ही तो था मैं....उस लड़के की भी बहुत बड़ी मजबूरी थी....और कोई भी अच्छा बेटा अपने माँ-बाप के लिए अपनी खुशियाँ कुर्बान कर सकता है...
मैं सोचता रहा रात भर आख़िर ये कौन सा जज्ज्बा है ?? किसी को दिल में बसा लेना ,फिर उसे अपने प्रेम-रूपी खयालों की अमराइयों में ढूद्ना , और रात दिन उसी के सपने देखना ,मसलन ! एक दुसरे का इंतजार , मिलने की बेचैनी ,जुदाई का गम ,ये खुसनशीबी की निशानियाँ बहुत कम खुश्नसीबो को मिलती हैं ।हमारी चाहतें , हमारी मुहब्बतें , जो नामुमकिन दीवारो को तोड़कर एक हो जाती है , ऐसा मिलन एक मिशाल ही तो होता है .. जिसकी आगोश मे हमारी जिन्दगी क़ैद हो जाती है.अगर यह हमारे लिए सरफ़रोश है तो हमारा क़ैद होना उस संगीत की तरह होता है जिसे छेड़ कर दिल को अजीब सा सुकून मिलता है ...जिसे लफ़्ज़ों में नही बयाँ किया जा सकता , ....मगर जब वही क़ैद रिहाई बन जाती है तो जीना दुस्वार सा हो जाता है ,अपने महबूब अपनी मुहब्बत से बिछड़ जान एक दर्द भरा हादसा होता है ,इस हादसे की वज़ह चाहे जो भी हो मगर तड़पते सिर्फ दो दिल ही है ...बस यही है....क्युकी

"उनकी यादों के जब जख्म भरने लगतें हैं ।
फिर किसी बहाने उन्हें याद करने लगते हैं ॥ "

खैर, मैं भगवान् से यही दुआ करूंगा की उन मासूम की ख्वाहिस्सो को अगर हो सके तो पूरा करें...बहुत दर्द देखा मैंने उन दोनों की आँखों में....इसका अंदाजा सिर्फ मै ही लगा सकता हूँ.....उनके साथ बिताया वो आधे घंटे का लम्हा मुझे सदियों का एहसास करा गया .....लेकिन अफ़सोस.....तोनो तनहा -२ घर गए....और साथ में उनकी तनहाई मैं भी अपने साथ लाया.....उसकी बातें अब भी मेरे कानो में गूंजती है...................बस..............


मेरे पेश -ए -नज़र , ऐ मेरे हमसफ़र

है यही एक गम ,हम बिछड़ जायेंगे

मेरी बेचारगी देख कर हर घडी
कहती है चश्म-नम, हम बिछड़ जायेंगे

आंसुओं में मेरी , उम्र बह जायेगी
तुम चले जाओगे याद रह जायेगी,
तुम ने ये क्या किया मुझको बतला दिया
कुछ दिनों में सनम हम बिछड़ जायेंगे

कल ना जाने कहाँ और किस हाल में
तुम उलझ जाओगे वक़्त के जाल में,
कल भुला कर उठो — साथ मेरे चलो
आज तो, दो क़दम —– कल बिछड़ जायेंगे!!

Wednesday, October 14, 2009

मुर्तिवाद Vs सामाजिक क्रांति

अभी कुछ दिन पहले मायावतीजी के मूर्तियों(फिजूलखर्ची) पर १ छोटा सा डिस्कसन एक मित्र के साथ चल रहा था.. लेकिन बात काफी लम्बी खीच गयी. ...फिर हम लोग उस नवीन कांशीराम स्मारक के चार-दिवारी पर बैठ गए (जो वी.आई.पी रोड पर है). मायावती के अनुसार इन पार्को और स्मारकों पे दलित समुदाय आकर बैठेंगे और अपने विकास का परिक्षेप में मंथन करेंगे....लेकिन ये बात भी सत्य है की इन स्मारकों पर कोई भी दलित नहीं आयएगा विकास का मंथन करने...यहाँ कुल्फी, आइस-क्रीम के साथ प्रेमी-युगल अपने प्यार रूपी अमराईयों में गोते लगायेंगे .......
आज दलितों का सबसे ज्यादा अपमान होता है..इन मूर्तियों के नाम पर ....मेरा तो ये मानना है की इससे आंबेडकर जी की भी अमर आत्मा संतुस्ठ नहीं होगी, मुझे अच्छी तरह याद है जब मैं अपने स्कूल में पढता था तो उन दिनों गाँधी जी, सुबास, आंबेडकर जी सबके बारे में बड़े ही गर्व से कुछ न कुछ टीचर सुनाते थे...लेकिन आज जाती-वाद, दलित-वाद के नाम पर आंबेडकर जी की भद्द पिट गयी ..आंबेडकर जी ने जो भी दलितों के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन किये वो सब उनकी मूर्तियों में दब गया....वजह सिर्फ ....राजगद्दी.....सत्ता........अभय दुबे जी के एक लेख में सही और सटीक लिखा है की ...राजसत्ता की कोठरी कालिख से भरी होती है। सामाजिक क्रांतियों की किरणें कितनी भी प्रखर क्यों न हों, राजनीति की कालिख से होकर गुजरने पर आम तौर पर उनकी चमक मंद होकर ही रहती है। राजसत्ता के साथ ज्यादा हेल-मेल का मतलब होता है सामाजिक क्रांतियों की धार का कुंद हो जाना। महाराष्ट्र के बाद अब उत्तर प्रदेश में आंबेडकरवादी सामाजिक क्रांति इसी समस्या से गुजर रही है। इस सामाजिक क्रांति के केंद्र में दलितों और उनके समुदायों द्वारा अपनी पहलकदमी पर लगाई जाने वाली आंबेडकर की मूर्तियां थीं। जैसे ही इन्हें लगाने का जिम्मा दलितों की राजसत्ता ने उठाया, ये मूर्तियां बाबा आंबेडकर के अनुयायियों के लिए सशक्तीकरण का स्त्रोत न रहकर, समग्र दलित परियोजना के लिए परेशानियों का सबब बन गईं। इन राज नेताओं के देश का बंटाधार कर दिया, ये सबसे बड़े झूठे है...विकास के नाम पर पता नहीं कितने झूठे वादे करते है..वैसे भी हमारे देश में सच बोलने की परंपरा नहीं रही है। सच बोलने वाले केवल एक महान व्यक्ति का जिक्र आता है -राजा हरिश्चंद। सत्य बोलने के लिए उन्होंने क्या-क्या नहीं सहा। लेकिन उनके बारे में ऐसा कोई सबूत नहीं मिलता कि उन्होंने कभी अपनी निजी जिंदगी के बारे में सच बोला हो। उन्होंने कभी भी खुलासा नहीं किया कि उनके अपनी पत्नी के अलावा कितनी महिलाओं से संबंध थे, उन्होंने अपनी पुत्री से कम उम्र की कितनी लड़कियों से संबंध बनाए थे, उन्होंने पांच सितारा सरायों से कितनी सफेद या अन्य रंगों की चादरें चुराई थीं। लेकिन इसके बावजूद उन्हें सत्यवादी का खिताब दे दिया गया जो दरअसल इस बात का सबूत है कि उनके जमाने में सच बोलने वालों का कैसा भयानक अकाल था। ये झूठ बोलने की परम्परा सदियों से चली आ रही है ....और सतत चलती रहेगी.....अब दलितों के उत्थान के लिए मूर्तियाँ लगी..फिर किसी सवर्ण के हाथ में सत्ता आएगी तो सवर्णों के उत्थान के लिए मुर्तिया लगवाएगा , फिर किसी ओ.बी.सी. वाले के हाथ सत्ता आएगी वो ओ.बी.सी उत्थान के लिए मुर्तिया लगवाएगा ......प्याज, टमाटर , दाल के भावः बढे इनको क्या लेना-देना....बस सब मुर्तिया देख कर पेट भर लेंगे....
खैर.....बशीर साहब के ये शेर जो कहीं न कही किसी सामाजिक क्रांति को वापस लाने की पुरजोर कोशिश है....
दुआ करो की ये पौधा सदा हरा ही लगे उदासियों से भी चेहरा खिला -खिला ही लगे ,
ये चाँद तारों का आँचल उसी का हिस्सा है कोई जो दूसरा उडे तो दूसरा ही लगे.
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे.
अजीब शख्स है नाराज़ होके हंसता है मैं चाहता हूँ खफा हो तो वो खफा ही लगे.
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा तो लगे .

Saturday, August 8, 2009

अच्छा लगता है वो मगर कितना



















भूल जाता हूँ मिलने वालों को
खुद से फिरता हूँ बेखबर कितना

उसने आबाद की है तन्हाई
वरना सुनसान था ये घर कितना

कौन अब आरजू करे उसकी
अब दुआ मैं भी है असर कितना

वो मुझे याद कर के सोता है
उस को लगता है खुद से दर कितना

आदतें सब बुरी हैं यारों उसकी
अच्छा लगता है वो मगर कितना

Thursday, August 6, 2009

टायसन परिणय बोनी


कल ही तो था टायसन का रिसेप्सन ...बोनी तो ऐसे चहक रही थी मानो उसे टायसन के रूप में ज़न्नत मिल गयी थी...सुर्ख होंठ,शरमाई सी आँखे, आवाज में सिलवट, निगाहों में चमक , लिए गेस्ट-हाऊस के चक्कर लगा रही थी...लेकिन मुए , गली के आवारा कुत्ते गेट के बहार से ऐसे घूर रहे थे जैसे बोनी की शादी ना-गवारा हो....बोनी डर के भाग जाती थी अपने टायसन के पास....और फिर फुल कन्संत्रेसन से "कभी अपने घुंघरू लगे कपडे को निहारती और कभी अपने सहजादे के गले में पड़ी चमकती माला को देखती..........टायसन , जो अभी ३ दिन पहले खाना-पीना बिलकुल छोड़ दिए थे ....शायद लगन लग गयी थी उनको.....

परसों दुर्भाग्य-वस हमारे मोहल्ले में आ गए थे घूमते-घूमते ....गली के गबरू जवान कुत्ते जो टायसन से खुन्नस खाए बैठे थे ...भाई , क्यों की कुत्तो के समाज में फुल- सर्टीफाईड विवाह स्ट्रिक्टली प्रोहिबिटेड है.....मोहल्ले की कोई छैल-छबीली किसी एक की जागीर नहीं हो सकती.......खैर !! "लल्ले(शर्माजी के कुत्ते का नाम...जो बिलकुल आवारा हो गया है..दिन भर आडवानी के किराना स्टोर की दूकान के सामने पड़ा रहता है .... चौराहा है न इसीलिए.....और इसी का जिगरी दोस्त "टाईगर (लेकिन अब मोहल्ले-वालो ने इनका नाम चेंज करके "छेदी " रख दिया है...क्युकी ये एक बार ये गलती कर के आंबेडकर-पार्क पहुँच गए थे ...जहाँ मायावती अपनी मूर्तियाँ स्थापित कर रहीं है...भाई , आप ही सोचो वहां कुत्तो का क्या काम....ये तो अच्छा हुआ की टाईगर पर गैंगस्टर नहीं लगा ..बाल बाल बच गए....लेकिन मूर्ति-उत्त्पीरण के तहत इनके कान में छेद कर दिया गया किसी पत्थर से.....तो आज भी इनके कान में छेद है....)........हाँ , तो हम बात कर रहे थे टायसन की ..... टायसन जैसे ही चौराहा पर दिखे , लल्ले ने घेर कर ...पूछना चाहा की " भाई , समाज भी नाम की कोई चीज़ होती है, ऐसे कैसे शादी कर लोगे तुम.....माना की हम मोहल्ले के आवारा कुत्ते हैं...लेकिन हैं तो "नवयुवक मंगल दल" के सदस्य...कोई भी सोसायटी के बाहर नहीं जा सकता....टायसन तो अकड़ गए, ऊपर से ह्यूमिडिटी ज्यादा थी......हो गया द्वंद ....एक बात तो तय है...गली के आवारा नवयुवको में बहुत एकता होती है....."छेदी भी भागता आया , लल्ले का साथ देने....फिर क्या था....टायसन की जम कर धुनाई हुयी....पास में खड़े मीडिया वाले(पिल्लै-छोटे कुत्ते ) फुल कवरेज़ कर रहे थे......जैसे - तैसे जान बचा कर टायसन को भागना पड़ा....लेकिन टांग में फ्रेक्चर हो ही गया .....

कल रिसेप्सन में काफी बुझे -२ से लग रहे थे टायसन ......अब ना जाने क्यों...शायद उन्हें अपनी हार का गम सता रहा था ...या शादी की जिम्मेदारियों से डर गए थे.....खैर , ये तो टायसन को ही पता होगा ....

खैर, कल तो तिवारी अंकल, और दीक्षित अंकल ने अच्छी पार्टी दी थी....कम-से-कम ३००-४०० लोगो को बुलाया था...और ये भी निर्देश था की "कृपया अपने श्वान को भी साथ लायें".....

Saturday, July 18, 2009

छोटा-सा तिनका हवा का रुख बताता है

४ दिन पहले एक मीटिंग के सिल-सिले में इलाहाबाद जाना हुआ, शाम को ७ बजे लखनऊ से लॉन्ग ड्राइव करने के तत्पश्चात इलाहाबाद पंहुचा. साथ में मेरा एक जूनियर भी था ...सोचा की रात यही किसी होटल में गुजार लूं फिर अगले दिन सुबह ८ बजे इलाहाबाद से ५० की.मी दूर मेजा में मीटिंग थी ...पर मुआ डर गया इस डर से की कहीं ९ बजे ने निंद्रा टूटे और मीटिंग छूट जाए ...फिर ये प्लान किया की ..मेजा में एक मेरे मित्र है ...उन्ही के घर चलता हूँ ...रात वही गुजरेगी ...
नैनी के पूल क्रॉस करते ही ही मेरा ड्राईवर बोला ....सर, एक बात बोलूँ बुरा तो नहीं मानोगे ....मैंने अच्छे बच्चे की तरह सिर्फ सीर हिलाया ....और मौन स्वीकृति दे दी ...."सर, मेजा में ही हमारा घर है ...और मेरी इच्छा है की आप हमारे घर चलते "......बहुत रिक्वेस्ट करने लगा
"मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है पर देने वाला दरिद्र नहीं होता। " यह सोच कर मैंने उसके घर चलने की हामी भर दी...

रात के ११ बजे उसके गाँव पंहुचा...वैसे भी गाँव में लोग ८-९ बजे तक सो जाते हैं....लेकिन उस दिन तो उनका रतजगा था...क्युकी उनके बच्चे का बॉस जो उनके घर आ रहा था....छोटी सी टूटी सी झोपडी से माता जी निकली ....चेहरे पे अमोल प्यार और मुस्कान लिए ...जैसे की हृदय में छुपा लेना चाहती थी मुझको ....मैंने ऐसी आव-भगत अपनी इस छोटी सी ज़िन्दगी में कभी नहीं देखि .....जैसे छोटा-सा तिनका हवा का रुख बताता है वैसे ही मामूली घटनाएँ मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं।
मुआ शहरो में तो सिर्फ ह्युमिदिती होती है ...फोग होता ....फ्लू होता ....जरा इन गाँव में गरीबो के घर आके तो देखो कितना ...स्नेह, प्यार...और अपनापन होता है ....
छोटे से संकीर्ण झोपडी में ....सभी बैठे थे ....लेकिन कोई किसी से बात नहीं कर रहा ...सभी मेरी तरफ देख रहे थे .....और जैसे ये सोच रहे हो ....."बैठा हूँ इस गरज से , शायद हवा चले" ...और आंटी जी ....मेरे पास आकर मुझे पंखा झलने लगी ....ऐसा लग रहा था की ना जाने कितना प्यार दे देना चाह्ती हो मुझको ....और ये भी सच है ..."विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है।"....माँ की ममता का कोई मोल नहीं है ....फिर मैंने बात-चीत खुद शुरू की ....और साथ ही साथ मैं ये भी महसूस कर रहा था की ...शायद वो ये देखना चाह रहे हो की ..आखिर बॉस कैसे बोलते है ..क्या बोलते है...अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। ...
खैर, रात के १ बजे तक मैंने उन लोगो से काफी बात-चीत की..बहुत सारा प्यार मिला...बहुत रेस्पेक्ट .....लेकिन पता नहीं क्यों मुझे गरीबी सबसे ज्यादा गाँव में ही दिखती है....
गाँव में कई लोग अभी भी ताँगे और बैलगाडी से पचासों किलोमीटर की दुरी तै करते है .कई लोगों ने उनकी तस्वीर कैनवास पर उतारकर जमाने भर को दिखाई और खूब ख्याति पाई. कुछ ने लिखे लंबे-लंबे गाँव की गरीबी पर उपन्यास लिख कर खूब वह-वही लूटी ....पर गरीब फिर भी गरीब ही रह गए..और लिखने वालों के नाम पर ढेर सारे इनाम आ गए...पर गरीब तो इस उम्मीद पर रह गए की..."ज़िंदगी तो उम्मीद पर टिकी होती हैं।"....शायद कभी सबेरा हो ..
निदा की एक ग़ज़ल कही न कही मेरे दिल के बहुत करीब है.........---------

हर घडी खुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
मैं ही कश्ती हू मुझी में है समंदर मेरा

किससे पूछू की कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूंढ़ता फिरता है मुझे घर मेरा
एक से हो गए मौसमों के चहरे सारे
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा

मुद्दतें बीत गई ख्वाब सुहाना देखे
जगता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर
आज तक हाथ में महाफुउस है पत्थर मेरा

Saturday, May 23, 2009

सुनो!! तुम लौट आना

उदास शामों की सिसकियों में ..

कभी जो मेरी आवाज़ सुनना ,
तो बीते लम्हों को याद कर के ,
इन्ही फिजाओं मे लौट आना ..

तुम आया करते थे खवाब बन कर ,
कभी महकता गुलाब बन कर ,
मैं खुश्क होंठों से जब पुकारूँ ,
इन अदाओं मे लौट आना …

मेरी वफाओं को पास रखना ,
मेरी दुआओं को पास रखना ,
मै खली हाथों को जब उठाऊँ ,

मेरी दुआओं मे लौट आना