Saturday, January 5, 2008

सुनो तुम लौट आओ ना!

सुनो तुम लौट आओ ना

वो देखो चाँद निकला है

सितारे जगमगा रहे हैं

हमारी मुन्तजिर आंखें

दुआएं मांगती आंखें

तुम्हें ही सोचती आंखें

तुम्हें ही ढूँढती आंखें

तुम्हें वापिस बुलाती हैं

ये दिल जब भी धड़कता है

तुम्हारा नाम लेता है

ये आंसू जब भी बहते हैं

तुम्हारे दुख मैं बहते हैं

ये बारिश जब भी होती है

तुम्हें याद करती है

खुशी जो कोई आयी भी

तुम्हारे बिन अधूरी है
सुनो!!!! तुम लौट आओ ना !!!!!!!

Hindi

4 comments:

36solutions said...

सत्‍य, किसी के बिन समूची दिंन्‍दगी सूनी हो जाती है ।

संजीव

छत्‍तीसगढ के शक्तिपीठ – 2

Sanjeet Tripathi said...

क्या बात है!
सुंदर्!
ऐसी पुकार सुनने के बाद कौन भला रूकी रह सकती है भाई!

Gyan Dutt Pandey said...

सन्दर भाव और सुन्दर कविता!

Anonymous said...

very touching nice.