सुनो तुम लौट आओ ना
वो देखो चाँद निकला है
सितारे जगमगा रहे हैं
हमारी मुन्तजिर आंखें
दुआएं मांगती आंखें
तुम्हें ही सोचती आंखें
तुम्हें ही ढूँढती आंखें
तुम्हें वापिस बुलाती हैं
ये दिल जब भी धड़कता है
तुम्हारा नाम लेता है
ये आंसू जब भी बहते हैं
तुम्हारे दुख मैं बहते हैं
ये बारिश जब भी होती है
तुम्हें याद करती है
खुशी जो कोई आयी भी
तुम्हारे बिन अधूरी है
सुनो!!!! तुम लौट आओ ना !!!!!!!
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4 comments:
सत्य, किसी के बिन समूची दिंन्दगी सूनी हो जाती है ।
संजीव
छत्तीसगढ के शक्तिपीठ – 2
क्या बात है!
सुंदर्!
ऐसी पुकार सुनने के बाद कौन भला रूकी रह सकती है भाई!
सन्दर भाव और सुन्दर कविता!
very touching nice.
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