Friday, July 20, 2007

मेरी हसरतों को शुमार कर , मेरी ख्वाहीशो का हीशाब दे

कहीं से रूत्जगे कहीं ज़र्निगार से ख़्वाब दे .

तेरा क्या उसूल है ज़ींदगी , तुझे कौन इसका जवाब दे ।

जो बीछा सकूं तेरे वास्ते जो सजा सकूं तेरे रास्ते .

मेरी दस्तारस मैं सीतारे रख मेरी मुट्ठियों को गुलाब दे .

कभी यूं भी हो तेरे रूबरू मैं नज़र मीला के ये कह सकूं ,

मेरी हसरतों को शुमार कर , मेरी ख्वाहीशो का हीशाब दे ..

2 comments:

Anonymous said...

I'm speechless reading this ghazal.

Anonymous said...

आपका ब्‍लाग देखा । प्रसन्‍नता हुई। लगता है कि आप नियमितरूप से लिखते हैं। ऐसा प्रतीत होता है आप आगे चलकर बहुत अच्‍छे लेखक बनेंगे ।
नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं।
-- शंकर सोनाने
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