आंखो  मे  जल  रहा  है  क्यों  बुझता नही  धुँआ . /
उठता  तो  है  घटा  सा  बरसता  नही  धुँआ .
चूल्हा  नही  जलाए  या  बस्ती ही  जला  गयी
कुछ  रोज़  हो  गए है  अब  उठाता  नही धुँआ .
आंखो  से  पोंचा se लगा  आंच  का  पत्ता
यूं  फेर  लेने  से  छुपता  नही  धुँआ .
आंखों  से  आंसुओं  के  मरासिम  पुराने  है .
मेहमान  ये  घर  मे तो  चुभता  नही  धुँआ .

2 comments:
Simply loved this ghazal.
Keep writing.
कुछ शब्द आपसे छूट गये थे तो पूरे कर रहा हूँ ।
आंखो मे जल रहा है क्यों बुझता नही धुँआ . /
उठता तो है घटा सा बरसता नही धुँआ .
चूल्हा नही जलाए या बस्ती ही जला गयी
कुछ रोज़ हो गए है अब उठाता नही धुँआ .
आंखो से पोंछ्ने से लगा आंच का पता
यूं चेहरा फेर लेने से छुपता नही धुँआ .
आंखों से आंसुओं के मरासिम पुराने है .
मेहमान ये घर मे आयें तो चुभता नही धुँआ .
Post a Comment