Friday, February 1, 2008

छेड़छाड़- एक प्रसंग.

आज मैं छेड़ छाड़ का ज़िक्र करूँगा. बहुत पहले व्यंग के जादूगर यशवंत कोठारी जी ने छेड़ छाड़ पर एक व्यंग लिखा था जो काफी मशहूर हुआ.छेड़-छाड़ पर लिखने की प्रेरणा उन्ही के व्यंग से मिली.
छेड़-छाड़ उस विधा का नाम है जिसे बेटा बिना बाप के सिखाये सीख जाता है.मूछों की रेखा आयी नही की बच्चा छेड़-छाड़ शास्त्र में उलझ जाता है.छेड़ने की पर्यायवाची: क्या माल है ,क्या कमर है,क्या चलती है, आती क्या खंडाला आदि .फसलों की किस्मों की तरह छेड़ छाड़ की की भी काफी किस्म होतीं हैं.जैसे बजारू छेड़ छाड़ ,घरेलू छेड़ छाड़ ,दफ्तरी छेड़ छाड़,जीजा साली छेड़ छाड़ ,फिल्मी छेड़ छाड़ ,साहित्यीक छेड़ छाड़ ,ब्लोगिंग छेड़छाड़ वगैरह, वगैरह.

वैसे मुझ खाकशार को छेड़छाड़ पर कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है.छेड़छाड़ की परम्परा आदिकाल से ही चली आ रही है.आदम ने हब्बा को छेडा परिणाम आज की सृष्टि .सपुर्न्खा ने राम लक्ष्मण को छेडा परिणाम सपुर्न्खा की नाक कटी.रावण ने सीता को छेडा परिणाम ,रावण का नाश हुआ.और आगे बढें तो द्वापर के सबसे बडे छेडैया कृष्ण जी हुए.पनघट पे गोपियों को छेडा और अनंत काल तक छेड़ते रहे परिणाम ये हुआ की गोपियों ने उनकी गैईया को चराने से मना कर दिया.

अब आया कलजुग जिसमे छेड़छाड़ ने काफी विकास किया.महाराणा प्रताप ने अकबर को छेडा,शिवाजी ने औरंगजेब को छेडा.गांधी जी ने अंग्रेजों को छेडा, विकसित देश विकाशील देशों से छेड़ छाड़ कर रहे हैं, पडोसी पडोसी से छेड़छाड़ कर रहा है.राजनितिक दल आपस में छेड़ छाड़ कर रहे हैं.सरकार जनता से छेड़छाड़ करती है,और हाँ, जनता भी पांच वर्षों में एक बार सरकार से ऐसा छेड़छाड़ करती है की सरकार चारो खाने चित्त.हिन्दी चिटठा पुरस्कार कमिटी ने २००७ की पुरस्कृत ब्लागर ममता जी को छेडा परिणाम ये हुआ की ममता जी ने पुरस्कार ही लेने से मना कर दिया .

छेड़छाड़ का प्रसिद्ध मौसम "फागुन " माना जाता है.वैसे मकर संक्रान्ति से सीजन शुरू हो जाता है फिर वसंत पंचमी और होली पर तो छेड़छाड़ एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की तरह हो जाता है.फिर आता है मई-जून जिसमे छेड़छाड़ अपने चरम पे होता है.क्युकी ये शादी व्याह का मौसम हो जाता हैं,इसमे खूब छेड़ छाड़ चलती है.

जहाँ तक बात है दफ्तरी छेड़छाड़ की,अगर अप्रैसल के टाईम बॉस छेड़छाड़ कर दे तो एम्प्लोयी बेचारा फिर एक साल तक रोता है.कभी कभी छेड़छाड़ रूपी अस्त्र तबादले के लिए भी किया जाता है. बॉस जब महिला कर्मचारी को छेड़ता है तो क्या बात.बॉस उन्हें अपने केबिन में बुलाता है,काफी पिलाता है,फिर शाम को उन्हें पिक्चर और डिनर के लिए आमंत्रित करता है और कुछ दिनो बाद महिला का प्रमोशन हो जाता हैं.

खैर छेड़छाड़ पर लिखते रहे तो ये अद्ध्याय कभी खत्म नही होगा.हम प्राईवेट नौकरी वाले तो साल भर छेड़छाड़ करते रहते हैं, न करें तो खाएं क्या? कभी कोडिंग से छेड़छाड़ ,कभी अल्गोरिथम से छेड़छाड़ ,कभी एस.डी.एल.सी से छेड़छाड़, कभी प्रोजेक्ट मैनेजर से छेड़छाड़ ,कभी एच.आर . से छेड़छाड़.........कभी खुद से छेड़छाड़!!!

2 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

यहां ब्लॉग में तो हर मौसम फागुन का दीखता है मित्र। कहीं न कहीं छेड़ छाड़ चलती ही है।

नीरज गोस्वामी said...

राज भाई
आप मेरे ब्लॉग पर आए ग़ज़ल पसंद की उसके लिए शुक्रिया. आप व्यंग बहुत अच्छा लिखते हैं, ग़ज़ब की भाषा और प्रवाह है आप की लेखनी में. लिखना कभी मत छोडियेगा ये इंधन है जीवन को चलायमान रखने का.
अगर आप के पास भाव हैं तो उम्र उनको व्यक्त करने में कभी आड़े नहीं आती, जब आप मेरी उम्र तक पहुंचेंगे तो ख़ुद जान जायेंगे...:)
नीरज