
सरिताओं का गहरा सागर उमड़ा था .
जब देखा था तुमने .
चाहत भरी निगाहों से मुझे!
चाहता था डूब जाऊं उनमे ,
पर, नही पा सका तुम्हारा वह अस्तित्व
फिर भी "प्रतीक्षारत " हूँ ,
इसीलिए आज तक !
की कभी तो मिलोगी तुम
ख्वाब में या ख़यालों में ,
एक अ-स्पस्ट सी परछाई बनकर!!!
4 comments:
आएगी आएगी बल्कि आती ही होगी इसे पढ़ने के बाद तो ;)
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
Bahut accha
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