Sunday, October 19, 2008

मुम्बई किसके बाप की है?

शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) ने एक बार फिर उत्तर भारतीयों पर कहर ढाया है। रेलवे भर्ती बोर्ड की प्रवेश परीक्षा देने मुंबई पहुंचे बिहार और उत्तर प्रदेश के छात्रों को दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने कई इलाकों में घेर-घेर कर मारा है। कार्यकर्ताओं ने परीक्षा केंद्रों में घुसकर भी छात्रों की पिटाई और उन्हें वहां से भगा दिया।

आख़िर ये राज ठाकरे चाहता है क्या है.क्यों देश का विभाजन करने में लगा है.ऐसे लोगों को देशद्रोही करार दे कर आजीवन कारावास भेज देना चाहिए. यह बड़े शरम की बात है हर रोज इन की ज़ुबान बदती ही जा रही है और अपने ही देश में अपने ही लोगों के साथ मार पीट की जाती है. यह जो राज जी कर रहे हैं, क्या उनके लिए कोई क़ानून नहीं है. बेचारे ग़रीब छात्रों को मारना पीटना क्या यह सही है? क्या देश के नेता इस गुंडे से परेशान होकर यह सब देखते रहेंगे? केंद्र सरकार को तुरंत दखल देकर राज के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए. वरना यह देश बंट सकता है.

मुम्बई राज ठाकरे के बाप की नही हैं.1905 में बाल गंगाधर तिलक ने जब पूर्णस्वराज की मांग की थी, तो उस महान आत्मा ने सिर्फ महाराष्ट्र की आजादी का संकल्प नहीं लिया था बल्कि वह सपना पूरे भारत के लिए था।

उत्तर भारतीयो और अन्य गैर मराठीओ के दम पर मुंबई आज इस मुकाम पर आ गई तो राज ठाकरे और उसके गुंडे आज बिना मेहनत के मलाई खाने आ गये! मुंबई जितनी तुम्हारी है उतनी ही उत्तर भारतीयों या पूरे भारतीयो की भी है! ज़्यादा इतराने की ज़रूरत नहीं है, दिल से गंदी ईर्ष्या निकालो! अपनी जानकारी सही करो, कुएं के मेंढक जैसे मत करो! अपना जनरल नॉलेज बढ़ा लो ! केवल उत्तर प्रदेश की जानकारी ले लो! इस देश को आज़ादी दिलाने के लिए सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश के लोगो ने ही शहादत दी है!
आज़ादी का पहला बिगुल उत्तर प्रदेश से ही मंगल पांडे द्वारा फूंका गया, और क्या बात करोगे! आज भी कश्मीर मे सबसे ज़्यादा उत्तर भारतीय ही शहीद हो रहे हैं! तुम्हें अगर उत्तर प्रदेश से सही माने में नफ़रत है तो आज से वहां पैदा हुए भगवान राम, कृष्ण, शंकर, उनके पुत्र गणेश की पूजा बंद करो! उत्तर प्रदेश का पैदा किया गेहूं, मक्का, चावल, बासमती चावल, तेल, आलू, फल या अन्य कोई भी वहां की बनी वस्तु खाना या उपयोग करना बंद करो! एक बार जाके देखो, वहां की आबादी केवल 17 करोड़ है! उसमें से बहुत सारे लोग उत्तर प्रदेश के ही सरकारी विभागो में आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजिनियर, साइंटिस्ट, प्रोफेसर, सेना, पुलिस, रेलवे, बैंक, रेलवे , मीडीया, फिल्म,उद्योगो मे, बिजनेस मे या कृषि मे बड़े बड़े ऑफीसर , कर्मचारी या श्रमिक के रूप मे काम कर रहे है, आज से नहीं एक जमाने से! देश मे सबसे ज़्यादा आई ए एस , आई पी एस , अन्य बड़े ओफिसर आज भी वही से पैदा होते है, क्यो ? !वहा का कोई भी शहर या गांव घूम कर देखो! वहां पर भी लोग बहुत ही अच्छी शान शौहत से है ! नोएडा, ग़ाज़ियाबाद ,आगरा , मेरठ , कानपुर , मथुरा ,फ़िरोजाबाद, मुरादाबाद,अलीगढ़, बनारस ,मुगलसराय ,मोदीनगर या लखनऊ, देश के बड़े औद्योगिक शहर है और करोड़ो लोग वहां काम करते है केवल १० -१५ लाख ग़रीब लोग या वे जिनको वहा काम नही मिल पाता या वे जिनको बाहर जाने का बेहतर मौका मिल गया हो वे लोग मुंबई , बंगलोर ,गुजरात,दुबई,इराक़,कनाडा,मारीशस, लंदन ,अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया या कही जाते है !और अपनी जबरदस्त मेहनत और प्रतिभा से काफ़ी आगे बढ़ते है !इसमे राज ठाकरे का कोई एहसान नहीं है।

राज ठाकरे को तो बाला साहेब ने लात मारकर निकाल दिया था , कोई पूछ नही रहा था तो कमजोर और ग़रीब लोगो को मारकर राजनीति मे आने का सपना देख रहा है ! इसने आज तक मुंबई या मराठी लोगो के भले के लिए कोई एक काम किया है तो बताओ ! देश तुमसे कोई उम्मीद भी नही कर रहा है !उत्तर भारतीयो की कंपनियो मे काफ़ी मराठियों को भी काम मिला हुआ है !ये सब जाकर देखो, गैर मराठीओ से बेहतर काम कर के दिखाओ, अपने आप ही गैर मराठी लोग को कोई काम नही देगा! और तब तुम और राज ठाकरे दीवाली मनाना( लेकिन दीवाली भी तो उत्तर प्रदेश से ही जुड़ी है)

राज ठाकरे ! मुंबई को बर्बाद मत करो ! बाल ठाकरे के बनाए, सामाजिक आधार को बर्बाद मत करो ! बाल ठाकरे ने मराठियों और पूरे देश के लोगों को साथ लेकर देश द्रोहियो को सबक सिखाया ! मुंबई "भारत माता" की है ! पूरे देश का वित्तीय संचालन यही से होता है, ऐसे कैसे छोड़ देंगे !राज ठाकरे को सोचना चाहिए , मुंबई किसके बाप की है और किसके बाप की नहीं है इसका फ़ैसला करने से पहले यह सोचना चाहिए कि उनसे पहले मुंबई किसकी या किसके बाप की थी और क्या मुंबई उन्हें उत्तराधिकार में मिली या उन्होंने खरीद ली या फिर छीनकर ले ली या चुराकर ले ली या मुंबई का अपहरण कर लिया.
..नही ..नही ..नही. मुम्बई सिर्फ़ तुम्हारे बाप की नही है..ये हमारे भी बाप की है..और सभी भारत-वासियों के बाप की है.

Tuesday, September 16, 2008

बचपन का जोक्स

वेब सर्फ़ करते हुए, बजी बॉय हाथ लगा , सोचा ये कॉमिक आप लोगो से भी शेयर करता चलूँ...ये कॉमिक्स पढ़ कर बचपन की याद आ गयी.


For More Cartoons Visit Buzziboy....

Sunday, July 27, 2008

तुम्हें भूलने की मैं कोशिश करूँगा

चमन की बहारों में था आशियाना
न जाने कहाँ खो गया वो ज़माना

तुम्हें भूलने की मैं कोशिश करूँगा
ये वादा करो के न तुम याद आना

मुझे मेरे मिटने का गम है तो ये है
तुम्हें बेवफा कह रहा है ज़माना

खुदारा मेरी कब्र पे तुम न आना
तुम्हें देख कर शक करेगा ज़माना

Saturday, July 19, 2008

झुलनियाँ का धक्का

अगर आप दिल्ली,मुम्बई,कलकत्ता जैसे शहरों मैं रहते है,और धक्का मारने में एक्सपर्ट नही है तो, आप हरदम धक्का खाते रहोंगे,यहाँ ऐसे-२ लगते है,धकापेल होती है कि देखने वाला भी धकिया जाय.दिल्ली की मेट्रो का धक्का हो या मुम्बई की लोकल ट्रेन का या कलकत्ता के ट्राम का धक्का,हम तो कहते है कि,धक्का खाते-खिलाते,धक्का मारते-मरवाते हम इतने कुशल हो गए है कि अगर “धक्का मार विश्वकप” प्रतियोगिता हो जाए तो यह सुनिश्चित है कि धक्का मार विश्व कप के विजेता हम ही होंगे!
इन दिनों दिल्ली में ब्लू लाइन बसों का धक्का बहुत प्रसिद्ध हो रहा है.दिल्ली सड़कों पर सुरक्षित यात्रा कर लेना पूर्व जन्म का पुण्य समझना चाहिए!

भारतीय धक्के विश्व-प्रसिद्द हैं, यहाँ धक्के की बिभिन्न प्रजातियाँ होती हैं, जैसे तन का धक्का, मन का धक्का, बीबी का धक्का, बॉस का धक्का, इश्क का धक्का, अदाओं का धक्का, जुल्फों का धक्का, सिफारिश का धक्का,प्रमोशन का धक्का,राजनीती का धक्का ,आदि....
यहाँ धन का धक्का सबसे प्रभावशाली माना जाता है.अगर धन का धक्का न लगे तो फ़िर काहे की नौकरी , कौन सी नौकरी. क्यों की धन के धक्को में झूलती नौकरी अच्छी लगती है.जहाँ कोई धक्का काम नही आता वहां धन का धक्का काम करता है.बीबी की नाराज़गी हो या प्रेयशी के रूठ जाने का धक्का , अगर आप के पास धन का धक्का है तो बिल्कुल परेशां होने की जरुरत नही है.

सब धक्कों से सर्वश्रेष्ठ धक्का कछार कन्याओं का धक्का होता है.क्यों की जब ये कमसिन लड़कियां धक्का लगाती है तो रोयें -रोयें में उस धक्के का एहसास होता है.और जब ये धीरे से धक्का मार के आगे निकल जाती हैं तो डूब मरने की नौबत आ जाती है.इन धक्को का मजा लेना हो तो इनकी अदाओं के धक्के,जुल्फों के धक्के खाईये फिर देखिये इन धक्को की इतनी लत पड़ जायेगी की धक्के खाते फिरोगे.

बहुत पहले एक गाना था "लगा झुलनिया का धक्का ,बलम कलकत्ता पहुँच गए...." जरा देखिये , इस कन्या के झुलनिया का धक्का ऐसा था की इनके प्रियतम सीधे कलकत्ता पहुँच गए. गज़ब की रही होगी ये कन्या और कितना सधा, और सटीक होगा इसकी झुलनिया का धक्का .झुलनिया से धक्का लगाने वाली यह कन्या कितनी एक्सपर्ट रही होगी की उसने इतने अनुमान से सही कोणीय विस्थापन और वेलोसिटी पॉवर से धक्का लगाया होगा की उसके बालम सीधे कलकत्ता पहुँच गए और कहीं रास्ते में अटके भी नही. बैज्ञानिकों द्वारा छोड गए रोकेट भी कभी-२ बीच रस्ते से टपक जाते हैं.जबकि कई सौ सालों से इस पर रिसर्च चल रही है. अभियंताओं द्वारा बनाये गए बाध, पुल, सड़के, फ्लाई-ओवर भी गिर जाते हैं , लेकिन इस बांकी छोरी के झुलनिया का धक्का कितना सही रहा होगा.

अगर आज झुलनिया पहनने वाली अभिनेत्रियों का सहारा लिया जाए तो आवागमन कितना आसान हो जायेगा, पेट्रोल, पैसे और समय की बचत होगी.इधर से झुलनिया का धक्का लगवाया उधर गए , और उधर से धक्का लगवाया इधर आ गए. आफिस जाना हो तो , घर से झुलनिया का धक्का लगवाओ ,और ऑफिस से झुलनिया का धक्का लगवाया तो घर पहुच गए.कितना उपयोगी होगा ये झुलनिया का धक्का ऑफिस की लेट-लतीफी भी कम हो जायेगी.देर रात रुक-कर ओवर-टाईम भी कर सकते हैं,क्यों की कनवेंस की समस्या तो झुलनिया के धक्के ने खतम ही कर दी.
लेकिन इस के लिए कम्पनियों को झुलनिया वाली बालाओं को हायर करना पड़ सकता है.तब पेपरों आदि में विज्ञापन निकलेगा की --
आवश्कता है तीन झुलनिया वाली लड़कियों की
योग्यता- धक्का मारने में निपुण , (ख़ुद की झुलनिया होना आवश्यक है.)
नोट- योग्य झुलनिया वाली बाला को इंसेंटिव तथा फ्री मील्स.

Sunday, June 22, 2008

हमरी भैसिया को घंटी किसने मारा

हमारे प्राचीन ग्रंथों में लिखा है की यदि कोई मनुष्य काम,क्रोध, मोह, लोभ त्याग तो वो परमानन्द को प्राप्त करता है. लेकिन मुझ खाकसार के तुक्ष विचार से यदि मनुष्य मोबाईल फ़ोन त्याग दे तो वो परमान्नद को प्राप्त करता है. अभी कुछ दिन पहले मैं अपने गाँव जौनपुर गया था. देखा की ५-६ साल बच्चो के हाथों में नोकिया एन-सिरीज़ , सोनी वी-फी न जाने कौन -२ से मोबाइल फ़ोन हाथ में. लेकिन ये देख के अच्छा भी लगा की चलो गाँव के लोग भी गजेट्स एंड टेक्नोलॉजी में आगे बढ़ रहे है.

अभी कुछ सालो की तो बात है, जब मेरे पड़ोस में किसी की कोई रजिस्ट्री, चट्ठी आती थी तो कुछ लोग मेरे पास ले कर आते थे, की राजू बेटा जरा ये पढ़ के सुना दो. .. झूठ नही बोलूँगा, इसी बहाने मैं भाभियों का लव-लेटर (भइया लोग भेजते थे) भी पढ़ लेता था.मुझे भी अच्छा लगता था की सभी तरह के दुखियारे मेरे पास आते थे चिट्ठी लिखाने.कोई बुड्ढा दादा जिसका बेटा महीनो से रुपया नही भेज रहा है, कोई औरत जिसका मरदवा दूर परदेश में शायद दूसरी मेहरिया लिए बैठा है, कोई छैल-छबीला बांका जवान जो दूर बैठा-२ किसी लड़की को चारा फेक रहा हो, कोई दिलफेंक औरत जो "सिलसिला" देखने के बाद अमिताभ बच्चन जैसे किसी शादी-शुदा मरद से जा फ़सी, कोई बेचारी कुवारी जो कुछ नही समझ पाती अपने दिल को इस नयी-२ सुगबुगाहट को, बस इतना जानती है की बड़ी दीदी के छोटे देवर "हीरा लाल" को देखते ही जाने कैसी कलियाँ सी चिटकने लगती है भीतर ही भीतर , और शरीर पानी-२ सा हो जाता हैं. ...... खैर ! अब जमाना पूरा का पूरा बदल गया .अब न कौनो चिट्ठी न पत्री, अब तो मोबाइल ही सब कुछ कर देता है.
खैर, कुछ महीने पहले जब हम गाँव गए तो , जगरनाथ दादा जिनकी उम्र करीब ७५ साल के आस-पास होगी , बहुत ही नेक और सीधे-सादे व्यक्ति हैं. मेरे पास आए एक नोकिया एन-सिरीज़ लेकर और बड़े गर्व से बोले "राजू बेटा तुम तो इंजिनीयर हो ,जरा देखो मेरा मोबैलवा चल नही रहा है, कुछ करो इसका. मेरी तो अक्ल ही गुम! क्युकी मैं तो वही नोकिया २१०० और एल.जी उसे किया था. मुझे तो एन-सिरीज़ का कोई आईडिया नही था. खैर मैंने दादा जी को बोला क्या हुआ है इसमे.बोले की जब बेटवा को फ़ोन लगाते हैं तो फ़ोन नही लगता, इसमे एक जनाना(औरत) बोलती है की तोहरा फोनवा का बैलेंस ख़राब चल रहा है,कृपया बैलेंस ठीक करवाएं.
फिर मैंने पूछा दादा जी आख़िर इसका बैलेंस ख़राब कैसे हुआ,
दादा बोले- का बताये बेटा, बस संजोग ख़राब था. हम मोबैलवा ले के अपनी भैसिया को दूध रहे थे , तभी हमरा फोनवा ससुरा बज गया, और भैसिया भड़क गयी. और अपसेट हो कर लात मार देस. फिर बेटवा हमरे सामने ही हमरे मोबैलवा की बैलेंस ख़राब हो गया.

मैंने भी बहुत अफ़सोस किया(बैलेंस ख़राब होने का). फिर मैंने जगरनाथ दादा को फ्री का सुझाव दिया की आप कस्टमर-केयर फ़ोन करके पूछ लो. फिर मैंने कस्टमर केयर फ़ोन लगा के दादा को पकड़ा दिया.
दादा- हैलो.. हैलो , भइया जय राम जी की , हम जगरनाथ निगोह गाँव से बोल रहे है.
कस्टमर-केयर: हम आपकी क्या मदद कर सकते हैं.
दादा- साहब, हमरे मोबैलवा को भून्गरी भैसिया ने लात मार दिस , तभी से हमारा मोबैलवा का बैलेंस ख़राब हो गया.
कस्टमर-केयर: अपना नम्बर बताएं.
दादा - नही हम को कोई नम्बर नही लगता , हम बिना चश्मा के हैं... बस थोडी अंदरूनी बताश है,जब जब पुरुवा चलती है तो थोड़ा थोड़ा पुरे शरीर में ऐठन आ जाती है.
कस्टमर-केयर: आपने अपना मोबाइल कब रिचार्ज कराया था ?
दादा - रोज़ ही चार्ज होता है, रात खाने खाने के बाद हमरी बहु बिरजू से रात २ बजे तक चार्ज करती है , क्युकी रात ११ बजे के बात फोनवा का बिल कुछ सस्ता हो जाता है.
कस्टमर केयर -तो ठीक है , आज फिर रिचार्ज कर लेना....आप का बैलेंस ठीक हो जायेगा.
दादा - अच्छा बेटा ठीक है, जुग-जुग जियो.
कस्टमर केयर - और कुछ जानना चाहेंगे मिस्टर जगरनाथ.
दादा - हाँ बेटा! आज कल मार्केट में "यूरिया " का क्या रेट चल रहा है? और हमरी नहर में पानी कब आएगा?


Category- Hindi Jokes

Sunday, May 25, 2008

गजोधर और बिजली की प्रेम कहानी

प्यारे गजोधर !
तुम्हे यहाँ से गए तीन दिन यानी ७२ घंटे यानी .....काश मेरा मैथमेटिक्स स्ट्रोंग होता तो में इस बेरहम जमाने को बता देती की अपने गजोधर से बिछड़े हुए कितने पल हो गए.तुम्हे याद है न अभी कुछ दिन पहले से तुम मुझे प्यार से गोभी का फूल कहते थे, आज तुम्हारा वही गोभी का फूल सूख कर मूली, गाजर की तरह हो गया है.

प्यारे गजोधर,तुम्हारे दिल्ली से आनेवाले हर पत्र (तुम दिल्ली ही गए हो न! कहीं मुझे धोखा दे कर मुम्बई हीरो बनने तो नही चले गए ?)........मैं भी जनम-जली बड़ी शक्की हूँ. हाँ , तो तुम्हारे हर पत्र की राह में ये चांदी के तराजू से मुहब्बत को तौलने वाली दुनिया .....नदी , पहाड़ सुरंग बिछा देगी, मगर तुम पत्र जरुर लिखना.इधर खाकी कपडे वाले को पोस्ट-मैन समझ पूछती हूँ " हमरे गजोधर का कौनो चिट्ठी - पत्री आयी है का ?) एक बार तो मैं एक पुलिस वाले को पोस्ट-मैन समझ कर उससे पूछने लगी, वो कमीना बोला खोपचे में चलो, वही दूंगा तुम्हे तुम्हरे गजोधर का पत्र.....तुम ऐसा वैसा कुछ न समझना ,तुम्हारी बिजली आज भी वैसे ही पाक-पवित्र है.
पर गजोधर, तुम्हारे जाते ही मुहल्ले के हवास के पुजारी मुझ बेबस लाचार, मजबूर औरत की मुहब्बत का इम्तिहान लेने लगे है.

कल मेरे पिताजी धमकी दे रहे थे की अगर तुम्हरा गजोधर दस दिन के भीतर नही आया तो मेरी शादी बिरजू से कर दी जायेगी.मैं सब जानती हूँ की ये सब समाज के ठेकेदारों की चाल है.पर मैं तुम्हे यकीन दिलाती हूँ की जिस तरह तुम्हारे पिताजी का बनाया मकान दो महीने में गिर जाता है, वैसे ही मैं इन समाज के ठेकेदारों की चाल दो दिन में गिरा कर मुहब्बत की दुनिया का नाम रोशन करुँगी, चाहे समाज के ठेकेदार चांदी के चंद सिक्के फेक-कर शहर की सारी माचिस खरीद ले.मगर मुहब्बत की शमा युही जलती रहेगी.

मेरा खाना-पीना तो छुट ही गया है, केवल पकौड़ी ही खाती हूँ,सांस लेना भी बोझ लगता है, पर नही लुंगी तो मार जाऊंगी.मुझे अभी मुहब्बत के कई इम्तिहान देने हैं, इतनी जल्दी मर कर मुहब्बत को जीते जी बदनाम नही होने दूंगी..... काश मेरे पंख होते तो मैं उड़ जाती,यूं तो यहा से दिल्ली जाने के लिए रेल, और प्लेन दोनों जाते है,पर आज तक जितनी भी प्रेमिकाए हुयी उन्होने ने पंख ही मांगे, मैं रेल से आ कर उन मुहब्बत की देवियों का सिर नही झुकाना चाहती.इसलिए जब तक मेरी साईज के पंख नही मिलते मैं नही आ सकती .

ओ, मेरे वक्त के शहजादे! तू वक्त के पहले ही आ. जमीन टूट पड़े, या जमीन के साथ तुम भी टूटो, मगर सीधे मत आना, खाली हाथ आ कर मेरे माथे पर कलंक का टीका मत लगाना, तुम जान हथेली पर ले कर आना, खाली हाथ और सर पे टोपी की जगह कफ़न बाढ़ कर आना... आओ और मुझ करम जली को बर्बाद होने से बचा लो, भले ही खुद बर्बाद हो जाओ.

लक्स जैसी खुशबू हमाम में नही.
आप जैसा प्यारा हिंदुस्तान में नही.

अगर सही सलामत आ गए तो मैं ऐसे ही ढेर सारी शेर आपको सुनूंगी, जो मैंने इस जुदाई मे कंपोज किये हैं.

- तुम्हारे प्यार की दीवानी
बिजली रानी

Saturday, March 15, 2008

मुझे खोने से डरता था

मेरी आखों पे मरता था
मेरी बातों पे हँसता था
नाजाने शख्स था वो कैसा
मुझे खोने से डरता था

मुझे जब भी वो मिलता था
यही हर बार कहता था

सुनो !!!!!

अगर मैं भूल जाऊं तो,
अगर मैं रूठ जाऊं तो

कभी वापिस न आऊं तो
भुला पाओगे ये सब कुछ
यूँही हँसती रहोगी क्या
यूँही सजती रहोगी क्या

यही बातें हैं बस उसकी
यही यादें हैं बस उसकी
मुझे इतना पता है बस ……!
मुझे वो प्यार करता था ,

मुझे खोने से डरता था!!!!!!!!!!!!!!

Saturday, March 1, 2008

प्रतीक्षारत हूँ !!!!!!


सरिताओं का गहरा सागर उमड़ा था .

जब देखा था तुमने .

चाहत भरी निगाहों से मुझे!

चाहता था डूब जाऊं उनमे ,

पर, नही पा सका तुम्हारा वह अस्तित्व

फिर भी "प्रतीक्षारत " हूँ ,

इसीलिए आज तक !

की कभी तो मिलोगी तुम

ख्वाब में या ख़यालों में ,

एक अ-स्पस्ट सी परछाई बनकर!!!

Friday, February 1, 2008

छेड़छाड़- एक प्रसंग.

आज मैं छेड़ छाड़ का ज़िक्र करूँगा. बहुत पहले व्यंग के जादूगर यशवंत कोठारी जी ने छेड़ छाड़ पर एक व्यंग लिखा था जो काफी मशहूर हुआ.छेड़-छाड़ पर लिखने की प्रेरणा उन्ही के व्यंग से मिली.
छेड़-छाड़ उस विधा का नाम है जिसे बेटा बिना बाप के सिखाये सीख जाता है.मूछों की रेखा आयी नही की बच्चा छेड़-छाड़ शास्त्र में उलझ जाता है.छेड़ने की पर्यायवाची: क्या माल है ,क्या कमर है,क्या चलती है, आती क्या खंडाला आदि .फसलों की किस्मों की तरह छेड़ छाड़ की की भी काफी किस्म होतीं हैं.जैसे बजारू छेड़ छाड़ ,घरेलू छेड़ छाड़ ,दफ्तरी छेड़ छाड़,जीजा साली छेड़ छाड़ ,फिल्मी छेड़ छाड़ ,साहित्यीक छेड़ छाड़ ,ब्लोगिंग छेड़छाड़ वगैरह, वगैरह.

वैसे मुझ खाकशार को छेड़छाड़ पर कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है.छेड़छाड़ की परम्परा आदिकाल से ही चली आ रही है.आदम ने हब्बा को छेडा परिणाम आज की सृष्टि .सपुर्न्खा ने राम लक्ष्मण को छेडा परिणाम सपुर्न्खा की नाक कटी.रावण ने सीता को छेडा परिणाम ,रावण का नाश हुआ.और आगे बढें तो द्वापर के सबसे बडे छेडैया कृष्ण जी हुए.पनघट पे गोपियों को छेडा और अनंत काल तक छेड़ते रहे परिणाम ये हुआ की गोपियों ने उनकी गैईया को चराने से मना कर दिया.

अब आया कलजुग जिसमे छेड़छाड़ ने काफी विकास किया.महाराणा प्रताप ने अकबर को छेडा,शिवाजी ने औरंगजेब को छेडा.गांधी जी ने अंग्रेजों को छेडा, विकसित देश विकाशील देशों से छेड़ छाड़ कर रहे हैं, पडोसी पडोसी से छेड़छाड़ कर रहा है.राजनितिक दल आपस में छेड़ छाड़ कर रहे हैं.सरकार जनता से छेड़छाड़ करती है,और हाँ, जनता भी पांच वर्षों में एक बार सरकार से ऐसा छेड़छाड़ करती है की सरकार चारो खाने चित्त.हिन्दी चिटठा पुरस्कार कमिटी ने २००७ की पुरस्कृत ब्लागर ममता जी को छेडा परिणाम ये हुआ की ममता जी ने पुरस्कार ही लेने से मना कर दिया .

छेड़छाड़ का प्रसिद्ध मौसम "फागुन " माना जाता है.वैसे मकर संक्रान्ति से सीजन शुरू हो जाता है फिर वसंत पंचमी और होली पर तो छेड़छाड़ एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की तरह हो जाता है.फिर आता है मई-जून जिसमे छेड़छाड़ अपने चरम पे होता है.क्युकी ये शादी व्याह का मौसम हो जाता हैं,इसमे खूब छेड़ छाड़ चलती है.

जहाँ तक बात है दफ्तरी छेड़छाड़ की,अगर अप्रैसल के टाईम बॉस छेड़छाड़ कर दे तो एम्प्लोयी बेचारा फिर एक साल तक रोता है.कभी कभी छेड़छाड़ रूपी अस्त्र तबादले के लिए भी किया जाता है. बॉस जब महिला कर्मचारी को छेड़ता है तो क्या बात.बॉस उन्हें अपने केबिन में बुलाता है,काफी पिलाता है,फिर शाम को उन्हें पिक्चर और डिनर के लिए आमंत्रित करता है और कुछ दिनो बाद महिला का प्रमोशन हो जाता हैं.

खैर छेड़छाड़ पर लिखते रहे तो ये अद्ध्याय कभी खत्म नही होगा.हम प्राईवेट नौकरी वाले तो साल भर छेड़छाड़ करते रहते हैं, न करें तो खाएं क्या? कभी कोडिंग से छेड़छाड़ ,कभी अल्गोरिथम से छेड़छाड़ ,कभी एस.डी.एल.सी से छेड़छाड़, कभी प्रोजेक्ट मैनेजर से छेड़छाड़ ,कभी एच.आर . से छेड़छाड़.........कभी खुद से छेड़छाड़!!!

Sunday, January 27, 2008

विल्स नेविकट और खड-खाना

मेरे मित्र अरुण तिवारी (हम लोग आठ साल से एक साथ रहते हैं) को कल एक शादी के निमंत्रण पर जाना हुआ.रात के ११ बजे वहाँ से फारिग हो कर कमरें पर आयें.देख रहा हूँ उनके हाथ में २ विल्स नेविकट(सिगरेट ) की डिब्बियां .मेरे तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा.मैंने पूछा तिवारी यार कोई लौटरी हाथ लगी या सिगरेट की डिब्बियों की बाहर बारिश हो रही थी.क्युकी मैंने हरदम तिवारी जी को १ या २ सिगरेट खरीदते हुए देखा (आठ साल से ).
उन्होने मुश्काराकर कहा “अबे यार !शादी में गया था न !! रोहिणी ,वही से जुगाड़ हुआ .लेकिन यार आते आते मैंने एक और डिब्बी पर हाथ फेरना चाहा पर फिसल गयी.फिर तिवारी जी पुलाव,शाही पनीर,टिक्की मसाला आदि के किस्से सुनाया .बहुत भीड़ हो गयी थी लोग छिना झपटी कर राहे थे.फिर रात के २ बजे तक हम लोग काफी बातचीत किये आज के बफे (खड खाने ) और व्यवस्था पर.

आज देश का बढियां खाना कुत्तों के पेट में जा रहा है.क्यों की बड़ी पार्टियों ,डिनरों, शादी व्याह में खडे खडे खाने का रिवाज़ है.पर आज तक यह समझ में नही आया की इस देश में कुर्सियों की ऐसी कौन सी बड़ी कमी आ गयी जो लोग बाग़ बैठकर खाना नहीं खा सकते.देख कर ऐसा लगता है की जैसे लोग प्लेट लेकर भोजन समेत घर भाग जायेंगे. ऐसे में अगर कान खुजलाना हो या सरकता हुआ चश्मा ठीक करना हो तो समस्या !!! एक हाथ में नेप्किन और प्लेट दूसरे में चमचा .तीसरा हाथ भगवान् ने दीया नहीं.मजबूरन पास गुजरते लोगो से कहना पड़ता है.भाई साहब जरा मेरा कान खुजला दीजिये या चश्मा सरका दीजिये . लोग बाग़ खाली प्लेट ले कर ऐसे इधर उधर टहलते हैं जैसे सूट पहन कर भीख मांगने जा रहे हो.

एक अजीब दृश्य होता है "बफे उर्फ़ खड खाने " का. हर आदमी ओलम्पिक खिलाडी की तरह इस लालच में उछलता है की सीधे पकवान के डोंगे पर जा कर गिरे और अपनी प्लेट में पहाड़ समेत ले.ऐसे मौके पर महिलाओं का कौशल देखने योग्य होता है.पहले अपने निजी उपलब्धियों (बच्चो ) को आगे ठेलती हैं ,फिर उनकी सुरक्षा के बहाने खुद डोंगे पर हावी हो जाती हैं .साथ साथ यह भी दोहराती जाती हैं की उनका कुछ खाने का मूड नही है...खाने की आपाधापी को देख कर ऐसा लगता है की लोग जिंदगी में पहली बार खाना खा रहे हों.खड खाने की लड़ाई में जो लोग विजयी होते हैं उनके प्लेट में लड़ा माल देख कर ऐसा लगता है की ये लोग अब चार पाच दिन तक खाना नही खाएँगे.


फिर कुछ देर बाद लोग खाने पर अपनी राय प्रस्तुत करते हैं.अरे मिश्र जी " शाही पनीर तो लाजवाब थी पर थोडी तीखी हो गयी थी.पूरियां थोडी जल गयी थी.मिश्रा जी आपने गोल गप्पे खाया था ? नही! मिश्र जी आश्चर्य से बोलते हैं .अमा यार ,शाही पनीर के राईट हैण्ड को दस कदम आगे बढ़ने पर मशरूम का डोंगा था ,उससे लेफ्ट को पुलाव के रास्ते हो कर स्ट्रेट जाने पर गोल गप्पे थे. ..............

Monday, January 21, 2008

उसे जब याद आएगा की सावन लौट आया है


उसे जब याद आएगा की सावन लौट आया है .
बुला लेगा वो मुझको या खुद ही लौट आएगा .

उसे जब याद आयेगा मैं कैसे मुस्कुराता था
तो आंखें मुस्करायेंगी , या दामन भीग जायेगा ,

उसे जब याद आयेगा मैं कैसे नाम लेता था
तो मेरा नाम लिखेगा , या अपना भी मिटायेगा,

उसे जब याद आएगा मेरा खामोश सा रहना
तो सब को बोल देगा वो या खुद से भी छुपाएगा ,

उसे जब याद आएगा मेरा नंगे सर फिरना
तो बिजली बन के कड़के गा , या बादल बन के छायेगा

उसे जब याद आएगा मेरा चलना , मेरा फिरना
तो राह में खार बोयेगा , या फिर पलकें बिछायेगा .
उसे जब याद आएगा .......................

Wednesday, January 16, 2008

तुने होंठों को लरज़ने से तो रोका होता?

तुझे इजहार -ऐ -मुहब्बत से अगर नफरत है
तुने होंठों को लरज़ने से तो रोका होता

बे-नियाजी से, मगर कंकपाती आवाज़ के साथ
तुने घबरा के मेरा नाम न पूछा होता

तेरे बस में थी अगर मशाल -ऐ -जज्बात की लौ
तेरे रुखसार में गुलज़ार न भड़का होता

यूं तो मुझ से हुई सिर्फ़ आब -ओ -हवा की बातें
अपने टूटे हुए फिकरों को तो परखा होता

यूं ही बे-वजह ठि-ठाकने की ज़रूरत क्या थी
दम -ऐ -रुखसत में अगर याद ना आया होता

तेरा अंदाज़ बना ख़ुद तेरा दिले -दुश्मन
दिल ना संभला , तो कदमों को संभाला होता

अपने बदले मेरी तस्वीर नज़र आ जाती
तुने उस वक़्त अगर आईना देखा होता

हौसला तुझ को ना था मुझ से जुदा होने का
वरना काजल तेरी आंखों में ना फैला होता .

Sunday, January 13, 2008

ममता जी ने सही किया या गलत.?

पुरस्कारों और विवादों में हमेशा चोली दामन का साथ रहा है.२००७ की पुरस्कृत ब्लागर ममता जी ने पुरस्कार लेने से मना कर दिया.जैसा की उन्होने कहा की-.–

हमने ब्लॉगिंग शुरू की थी तो सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए न कि किसी पुरस्कार प्राप्ति के लिए।जिस दिन हमें इस पुरस्कार के बारे मे पता चला था उस दिन हमे ख़ुशी और आश्चर्य दोंनों हुआ था।और जहाँ ख़ुशी और आश्चर्य होता है वहां दुःख भी होता है । ख़ुशी हमें इस लिए हुई थी कि हमारे ब्लॉग को इस लायक समझा गया कि उसे पुरस्कार के लिए चुना गया और आश्चर्य इस बात का था कि हमारा ब्लॉग कैसे और क्यूँ चुना गया और दुःख इस बात का हुआ जिस तरह हमारा ब्लॉग चुना गया ।

अब राम जाने की वो महिला होने के नाते अपनी इगो की वज़ह से पुरस्कार ठुकरा दिया या इस गन्दी राजनीति से आहत हुईं. इसके इतर ममता जी एक ससक्त ब्लोगर रहीं है ,खाश कर के मेरी पसंदीदा ब्लोगर .इनके लेखन में कोई बनावटीपन नहीं रहता बिलकुल सही और सटीक लिखतीं है.जैसा की पुरस्कारों का एलान करते हुए जो पोस्ट लिखी गई थी, उनके चिट्ठे को चुनने के पीछे जो भी कारण दिए गए थे, उससे बढ़िया और कोई आधार नहीं हो सकता था ।हाँ अगर ममता जी यह सोचतीं है कि महिला के नाम पर कृपा के रूप में दिया गया है तो अलग बात है.

कुछ लोगो का मानना है की यह एक घटिया राजनीती का नतीजा है,जैसा की पंकज जी ने कहा की "काश बाकी विजेता भी निज स्वार्थो से उठकर ममता जी की तरह साहस दिखा पाते। यदि ऐसा होगा तो सम्मान की राजनीति और सम्मान की दुकान चलाने वाले दोनो ही जड से उखड जायेंगे। दरअसल यह सब मील का पत्थर साबित होगा और आगे की पीढी याद करेगी कि कैसे खुले मन वाले ब्लागरो ने टुच्चे साहित्य माफिया को धूल चटायी थी।कैसे सब कुछ बढिया चल रहा था छोटे से ब्लाग परिवार मे इस गन्दी सम्मान राजनीति के आने से पहले। मैने पहले ही चेताया था और इसीलिये आवेदन ही नही किया था। आशा है आगे ऐसे सम्मानो से पहले दुकानदार दस बार सोचेंगे।""
खैर आप के क्या विचार हैं.ममता जी ने सही किया या गलत.?

Friday, January 11, 2008

कारवां के साथ रहकर मैं अकेला ही रहा

थक रहे है पाँव लेकिन मन थका लगता नही.
आ रही है सांझ लेकिन पथ चूका लगता नहीं.

कारवां के साथ रहकर मैं अकेला ही रहा ,
ठौर तो मिलते रहे पर घर मिला लगता नहीं.

बीज थे संकल्प के वट-वृक्ष बनने के लिए.
रीढ़ में थी ग्रंथियां यह तन तना लगता नहीं.

बोझ थी यह जिंदगी कुछ बोझ औरों का रहा,
झुक रही सीधी कमर पर सिर झुका लगता नहीं.

प्रश्न चिन्हों में उलझकर रह गए उत्तर सभी,
है यथावत आज भी यह भ्रम मिटा लगता नहीं.

बूँद थे हम बूँद बनकर हर पहर रिसते रहे ,
पूर्ण कब थे कब घटे यह घट भरा लगता नहीं.

बज रहीं शहनाइयां इस मातमी माहौल में
त्रासदी युग की विकट यह स्वर बुरा लगता नहीं।

हिन्दी कविता

Tuesday, January 8, 2008

बारह में से चार गए ?

आज कल मौसम में परिवर्तन होने से काम करने का बिलकुल भी मन नही करता.कल ऐसे ही ऑफिस में खाली खाली सा,अंगडाई लेते हुए बेमन से कंप्यूटर के कीबोर्ड पर अंगुलियाँ फिरा रहा था.संयोग से उसी दिन बॉस अमरीका से आये थे. पता नही था,अचानक बॉस हमारे केबिन में आये ..हम तो भैया बिलकुल नींद में मस्त स्टीव बकनर की तरह ये भी ठीक से नही देखा की द्रविड़ आउट है या इन .पास में कोई पोंटिंग भी नही था जिससे पूछते की क्या है??
खैर,बोस अन्दर आये ,और पूछा की "राज ४ प्रोजेक्ट्स थे २ तो फाईनल हो गए ,अभी बचा कितना? पता नही वो नींद में थे की मैं .उनको ये भी नही पता ४ में से २ गए तो बचा कितना.मेरा तो ये मन किया की बोल दे की "सिर ४ में से २ गया तो कुछ नही बचा.
ऐसे ही एक बार बादशाह अकबर अपने दरबारियों के से पूछा की "बारह में से चार गए तो क्या बचा"?
कई दरबारियों ने बेसाख्ता बोला "आठ" .
बादशाह से ने उचित उत्तर न पाकर बीरबल से वही प्रश्न दोहराया .
तब बीरबल ने कहा - जहाँपनाह,बारह में से चार गए तो कुछ भी नही बचा.
साबित करो-अकबर ने कहा.
"जहाँपनाह ,वर्ष में बारह महीने होते है .उन बारह महीनों को हम जाडा, गर्मी ,बरसात के रूप में चार-चार महीनों में बाट लेते है.अगर इसमे से बरसात के चार माह निकाल दिए जाएँ तो कुछ भी नही बचेगा.कूंये , तालाब सूख जायेंगे .फसलें लह-लहा न पायेंगी -सब कुछ सूख जायेगा.इसीलिए मैंने कहा की कुछ भी नही बचेगा...एक बार फिर बाजी मार ले गए बीरबल.

Saturday, January 5, 2008

सुनो तुम लौट आओ ना!

सुनो तुम लौट आओ ना

वो देखो चाँद निकला है

सितारे जगमगा रहे हैं

हमारी मुन्तजिर आंखें

दुआएं मांगती आंखें

तुम्हें ही सोचती आंखें

तुम्हें ही ढूँढती आंखें

तुम्हें वापिस बुलाती हैं

ये दिल जब भी धड़कता है

तुम्हारा नाम लेता है

ये आंसू जब भी बहते हैं

तुम्हारे दुख मैं बहते हैं

ये बारिश जब भी होती है

तुम्हें याद करती है

खुशी जो कोई आयी भी

तुम्हारे बिन अधूरी है
सुनो!!!! तुम लौट आओ ना !!!!!!!

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