Sunday, May 25, 2008

गजोधर और बिजली की प्रेम कहानी

प्यारे गजोधर !
तुम्हे यहाँ से गए तीन दिन यानी ७२ घंटे यानी .....काश मेरा मैथमेटिक्स स्ट्रोंग होता तो में इस बेरहम जमाने को बता देती की अपने गजोधर से बिछड़े हुए कितने पल हो गए.तुम्हे याद है न अभी कुछ दिन पहले से तुम मुझे प्यार से गोभी का फूल कहते थे, आज तुम्हारा वही गोभी का फूल सूख कर मूली, गाजर की तरह हो गया है.

प्यारे गजोधर,तुम्हारे दिल्ली से आनेवाले हर पत्र (तुम दिल्ली ही गए हो न! कहीं मुझे धोखा दे कर मुम्बई हीरो बनने तो नही चले गए ?)........मैं भी जनम-जली बड़ी शक्की हूँ. हाँ , तो तुम्हारे हर पत्र की राह में ये चांदी के तराजू से मुहब्बत को तौलने वाली दुनिया .....नदी , पहाड़ सुरंग बिछा देगी, मगर तुम पत्र जरुर लिखना.इधर खाकी कपडे वाले को पोस्ट-मैन समझ पूछती हूँ " हमरे गजोधर का कौनो चिट्ठी - पत्री आयी है का ?) एक बार तो मैं एक पुलिस वाले को पोस्ट-मैन समझ कर उससे पूछने लगी, वो कमीना बोला खोपचे में चलो, वही दूंगा तुम्हे तुम्हरे गजोधर का पत्र.....तुम ऐसा वैसा कुछ न समझना ,तुम्हारी बिजली आज भी वैसे ही पाक-पवित्र है.
पर गजोधर, तुम्हारे जाते ही मुहल्ले के हवास के पुजारी मुझ बेबस लाचार, मजबूर औरत की मुहब्बत का इम्तिहान लेने लगे है.

कल मेरे पिताजी धमकी दे रहे थे की अगर तुम्हरा गजोधर दस दिन के भीतर नही आया तो मेरी शादी बिरजू से कर दी जायेगी.मैं सब जानती हूँ की ये सब समाज के ठेकेदारों की चाल है.पर मैं तुम्हे यकीन दिलाती हूँ की जिस तरह तुम्हारे पिताजी का बनाया मकान दो महीने में गिर जाता है, वैसे ही मैं इन समाज के ठेकेदारों की चाल दो दिन में गिरा कर मुहब्बत की दुनिया का नाम रोशन करुँगी, चाहे समाज के ठेकेदार चांदी के चंद सिक्के फेक-कर शहर की सारी माचिस खरीद ले.मगर मुहब्बत की शमा युही जलती रहेगी.

मेरा खाना-पीना तो छुट ही गया है, केवल पकौड़ी ही खाती हूँ,सांस लेना भी बोझ लगता है, पर नही लुंगी तो मार जाऊंगी.मुझे अभी मुहब्बत के कई इम्तिहान देने हैं, इतनी जल्दी मर कर मुहब्बत को जीते जी बदनाम नही होने दूंगी..... काश मेरे पंख होते तो मैं उड़ जाती,यूं तो यहा से दिल्ली जाने के लिए रेल, और प्लेन दोनों जाते है,पर आज तक जितनी भी प्रेमिकाए हुयी उन्होने ने पंख ही मांगे, मैं रेल से आ कर उन मुहब्बत की देवियों का सिर नही झुकाना चाहती.इसलिए जब तक मेरी साईज के पंख नही मिलते मैं नही आ सकती .

ओ, मेरे वक्त के शहजादे! तू वक्त के पहले ही आ. जमीन टूट पड़े, या जमीन के साथ तुम भी टूटो, मगर सीधे मत आना, खाली हाथ आ कर मेरे माथे पर कलंक का टीका मत लगाना, तुम जान हथेली पर ले कर आना, खाली हाथ और सर पे टोपी की जगह कफ़न बाढ़ कर आना... आओ और मुझ करम जली को बर्बाद होने से बचा लो, भले ही खुद बर्बाद हो जाओ.

लक्स जैसी खुशबू हमाम में नही.
आप जैसा प्यारा हिंदुस्तान में नही.

अगर सही सलामत आ गए तो मैं ऐसे ही ढेर सारी शेर आपको सुनूंगी, जो मैंने इस जुदाई मे कंपोज किये हैं.

- तुम्हारे प्यार की दीवानी
बिजली रानी