Saturday, July 3, 2010

ख़्वाब इन आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये / बशीर बद्र

ख़्वाब इस आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये
क़ब्र के सूखे हुये फूल उठा कर ले जाये

मुंतज़िर फूल में ख़ुश्बू की तरह हूँ कब से
कोई झोंकें की तरह आये उड़ा कर ले जाये

ये भी पानी है मगर आँखों का ऐसा पानी
जो हथेली पे रची मेहंदी उड़ा कर ले जाये

मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझ को
ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाये

ख़ाक इंसाफ़ है नाबीना बुतों के आगे
रात थाली में चिराग़ों को सजा कर ले जाये

Monday, May 10, 2010

मेरी शर्त


रिश्ता तोडना चाहो
तुम मुझ को छोड़ना चाहो
तो मेरी शर्त इतनी है ,
तुमें जो दे चूका हूँ मैं
मुझे लौटा दो वो सब कुछ …..!
मेरे लम्हे वो चाहत के
वो सब तोहफे मोहब्बत के
वो भीगी डायरी मेरी
वो सारी शायरी मेरी
मेरे वो कीमती लम्हे
जो तुझ को सोचते गुजरे
वो पल जो एक कयामत थी !
जो रास्ता देखते गुजरे
खुदा को भूल कर वो दिन
जो तुझ को सोचते गुजरे
तो फिर वो ज़िन्दगी मेरी
हाँ बोलो …..!!!
हर ख़ुशी मेरी
कहो लौटा सकोगी तुम ????