Friday, July 20, 2007

मेरी हसरतों को शुमार कर , मेरी ख्वाहीशो का हीशाब दे

कहीं से रूत्जगे कहीं ज़र्निगार से ख़्वाब दे .

तेरा क्या उसूल है ज़ींदगी , तुझे कौन इसका जवाब दे ।

जो बीछा सकूं तेरे वास्ते जो सजा सकूं तेरे रास्ते .

मेरी दस्तारस मैं सीतारे रख मेरी मुट्ठियों को गुलाब दे .

कभी यूं भी हो तेरे रूबरू मैं नज़र मीला के ये कह सकूं ,

मेरी हसरतों को शुमार कर , मेरी ख्वाहीशो का हीशाब दे ..

बुझता नही धुँआ

आंखो मे जल रहा है क्यों बुझता नही धुँआ . /
उठता तो है घटा सा बरसता नही
धुँआ .

चूल्हा नही जलाए या बस्ती ही जला गयी
कुछ रोज़ हो गए है अब उठाता नही धुँआ .

आंखो से पोंचा se लगा आंच का पत्ता
यूं फेर लेने से छुपता नही धुँआ .

आंखों से आंसुओं के मरासिम पुराने है .
मेहमान ये घर मे तो चुभता नही धुँआ .

Thursday, July 12, 2007

अजनबी

हमसफ़र बनके हम साथ हैं आज भी ।
फीर भी है ये सफ़र अजनबी अजनबी ।
राह भी अजनबी मोड भी अजनबी,
जाएँ हम कीधर अजनबी अजनबी।
जिन्दगी हो गयी है सुलगता सफ़र ,
दूर तक आ रहा है धुआं सा नज़र
जाने केस मोड पर खो गयी हर ख़ुशी ।
देके दर्द -ए -ज़ीगर अजनबी अजनबी ,
हमने चुन चुन के तिनके बनाया था जो ,
आशियाँ हसरतों से सजाया था जो
है चमन में वही आशियाँ आज भी,
लग रह है मगर अजनबी अजनबी,
कीसको मालूम था दिन ये भी आएंगे ,
मौसमों की तरह दिल बदल जायेंगे ,
दिन हुआ अजनबी रात भी अजनबी ,
हर घड़ी हर पहर अजनबी अजनबी.