Tuesday, November 20, 2007

कशमकश

ढलती शाम तुमको देखा ,चहलकदमी करते हुए !
कदम तेरे बढ़ रहे थे ,यूं कशमकश में फँसे हुए ,
अजब थी हालत थी तेरी ,जैसे कि बस में हो दिल तेरा ,
कभी गुमसुम सी लगती थी तुम,कभी मायूस सी ,
चेहरे पे लटकती ये बेपरवाह लटें ,कितनी मासूम हो तुम !!!
सोचता रह रात भर ,कि पूछूं परेशानी तुम्हारी ,
पर डर गया इस डर कि कही और ना परेशान कर दूं तुम्हे ,
इस भोले से चेहरे पर अच्छी लगती है ,लकीरे सिर्फ मुस्कराहट कि ,
अपनी रंजिशे ,मुश्किलें ,हमे दे दो ,
लेकिन खुश रहा करो ....मेरे लिए !!
पहले कि तरह ..................................!!!

5 comments:

ghughutibasuti said...

कविता अच्छी लगी किन्तु कहीं कहीं शब्दों की अशुद्धियाँ खटकीं ।
घुघूती बासूती

Gyan Dutt Pandey said...

वाह, बिल्कुल किशोर मन की कविता है। ऐसे लेखन होते रहने चाहियें। किशोर मन को फेड-आउट नहीं होना चाहिये।

बालकिशन said...

अच्छी कविता है. सही मे किशोर मन के भावो को शब्दों का एक सार्थक रूप देते हुए.

बसंत आर्य said...

ठीक है पर कुछ आगे निकल चले जमाने के साथ भाई मेरे

Anonymous said...

hi its nice poem
and your stuff is also good
which will me drag me here next time
keep it up raj
best of luck