मैंने देखा है एक सपना ,
प्यारा सा सपना ,
जिसमे है सिर्फ मैं और मेरी दुनिया ,
मेरी दुनिया कि छोटी-छोटी खुशियाँ ,
फूलों की रंगिनिया , खुशबू भरी कलियाँ ,
समेट लेना चाहता हूँ मैं ,
सभी सुखो कि अनुभूतियों को ,
सारे जहाँ के प्यार भरी मुस्कान को ,
पर क्या ?
इस बनावटी दुनिया में रहकर
कभी यह मेरा "सपना "
सच हो पायेगा ?!!!
Saturday, November 24, 2007
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7 comments:
कभी यह मेरा "सपना "
सच हो पायेगा ?!!!
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इस प्रश्न से आतन्कित हो स्वप्न देखना बन्द नही होना चाहिये।
उम्मीद पर दुनिया कायम है-इतना तो जानते हैं ना।
ज्ञानजी और अनुराधा जी ने जो कहा है उससे आगे कहने के लिए कुछ नही है. ना तो हम सपने देखना बंद करेंगे और ना ही उम्मीद छोडेंगे.
वाकई आपकी कविता काफी अच्छी और दमदार है.
स्वप्न देखना मत छोडिये जनाब , कभी-कभी सपने सच भी हो जाते हैं , बहुत बढिया !
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
अनुराधा जी ने सही ही कहा है की वाकई में उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है. हालांकि मैं इसमें एक बात और जोड़ना चाहूँगा की "हम बदलेंगे जग बदलेगा, हम सुधरेंगे जग सुधरेगा" जैसा हम अपने चारों ओर पाना चाहते हैं, अगर हम ख़ुद वैसा ही बन जाए, तो काफी कुछ तो वैसे भी बदल जाता है. पर जो भी हो, आपकी कविता और आख़िर का प्रश्न एकदम सार्थक है. लेखनी अच्छी चली है. नितांत आशावादी...
Hi Raj,
Achhe ja rahe ho yaar...
Sapne dekhoge nahi tu pure kaise honge...
Hope ur DREAMS comes true one day...
See U very soon...
....Ravikant Dubey...
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