Saturday, September 22, 2007

फतवा- आदमी बन के दिखाओ तो कोई बात बने ।

मुंबई में गणेश पूजा में शामिल होने के कारण सलमान के खिलाफ फतवा जारी किया है। कहना है कि जब तक सलमान दोबारा पूरी तरह कलमा नहीं पढ़ते हैं , उन्हें मुस्लिम नहीं समझा जाएगा।
मिश्रा पिछले दिनों आए दो अजीबोगरीब फतवों ने अजीब सी स्थिति पैदा कर दी है। ये फतवे किसी ऐरे-गैरे की ओर से नहीं बल्कि देश के अछे मौलवियों की ओर से जारी किए जा रहे हैं। देश के बड़े मुफ्तियों में से एक इज्ज़ात आतियाह ने कुछ ही दिन पहले नौकरीपेशा महिलाओं द्वारा अपने कुंआरे पुरुष को-वर्करों को कम से कम 5 बार अपनी छाती का दूध पिलाने का फतवा जारी किया। और वहीँ एक और p पीने का फतवा !!!!!! ,
इस फतवे में यह कहा गया है कि पैगंबर मोहम्मद के साथी उनका पेशाब पीते थे और ऐसा करना पुण्य का काम है। यह फतवा जारी करते हुए मौलवी अली गुमआ ने हदीथ का हवाला दिया। गुमआ का कहना है कि जिस तरह मां अपने बच्चे के मल-मूत्र पर नाक-भौं नहीं सिकोड़ती क्योंकि वह उससे बेइंतहा प्यार करती है , उसी तरह हज़रत मोहम्मद का थूक , पसीना , बाल , पेशाब और रक्त भी पाक हैं। प्रमुख इस्लामिक संस्था दारुल-उलूम देवबंद ने फोटोग्राफी को शरीयत कानूनों के खिलाफ करार देते हुए इस पर पाबंदी लगाने वाला एक फतवा जारी किया है। इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के धर्मगुरुओं ने पर्यटन मंत्री नीलोफर बख्तियार के खिलाफ तालिबानी शैली में एक फतवा जारी किया है और उन्हें तुरंत हटाने की मांग की है।

हमारा भारत जो दुनिया भर में ,"अनेकता में एकता " के नाम से जाना जाता है ,कुछ ऐसे ही धर्म गुरुओं के चलते जो सिर्फ खुद खुदा -भगवान् बनना चाहते है ,अपने जन प्रचार को बदावा देने के लिए ऐसी घटिया हरकते करने लगे है .हमारा प्यारा भारत जहा हम साथ साथ ईद ,दिवाली ,होली ,मुहर्रम मन्नाते है ,जहा हम एक दुसरे के सुख दुःख मे एक साथ एक साथ सामिल होते है , आख़िर ऐसा फतवा जो भगवान् -खुदा को बाठ ले (
गणेश पूजा में शामिल होने के कारण सलमान के खिलाफ फतवा ),ये तो हानिकारक ही है ना .इन धरम गुरुओं को कौन समझाए ,खुदा ,भगवान् तो एक ही है ।
मार्क ट्वेन का मत है कि भारत मानव वंश का उद्‍गम, अनेक भाषाओं तथा बोलियों की जन्म-स्थली, इतिहास की माता, पौराणिक एवं अपूर्व कथाओं की दादी और अनेक परम्पराओं की परदादी है। मानव इतिहास की अत्यंत बहुमूल्य उपलब्धियाँ भारत के खजाने की ही देन हैं। फिर हम ऐसा फतवा होने दुनिया कि नजर में क्यों अपनी एकता खो रहे है ,

धर्म का संबंध मनुष्य के आंतरिक विश्वास और उसके बाह्य नैतिक आचरण — सदाचार – से ठहरता है । यदि विभिन्न धर्मों के मूल सिद्धांतों की विवेचना करें तो धर्म का अर्थ उच्चतर मानव मूल्यों को धारण करना ठहरता है जिसे किसी शायर ने बहुत सरल और सार्थक भाषा में परिभाषित किया है :

आदमी बन के दिखाओ तो कोई बात बने ।

यो तो आसान है हिंदु या मुस्लमा होना। ।

आज भी मुझे याद है ,हमारे पदोश मे "राबिया " थी ,मेरी छोटी बहन जो कि मुस्लिम थी ,उसकी विदाई में मैं इतना रोया था ,जितना कि मैं अपनी सगी बहन कि शादी में नही रोया था ,आज भी राबिया कि पवित्र राखी मेरे हाथो को सुसोभित करती है ,आज भी मुज्जफर दादा कि पाक - कुरान कि आयतें याद है ,जो वो मुझे बचपन मे सुनाया करते थे ,आज भी जब हम अपने गाँव जाते है ,सबीना चाची हसते हुये गले लगा के बोलती है"राज " बेटा कमजोर हो गए हो ,खाने पीने मे लापरवाही करते होगे (चाहे मैं कितना ही स्वास्थ रहूँ ),आज भी वही ईद आती है ,जब हम और शेराज भाई एक ही चम्मच से सिंवायी खाते है .राबिया ,मुजफ्फर दादा जरा समझाओ इन धरम के ठेकेदारों को ,खुदा को क्यों बाटना चाहते है .क्यों दीवार ढाल रहे है ये हमारे बीच ,क्यों नफ़रत पैदा करना चाहते है .कितना दर्द होता है ,ये धरम के ठेकेदार नही समझेंगे .बस यही ख़्याल आता है ।

देख दहलीज़ से काई नही जाने वाली ।

ये बेईल्म सच्चाई नही जाने वाली ।

एक तालाब सी भर जाती है हर बारिश में ।

मैं समझता हूँ ये खाई नही जाने वाली ।

चीख निकली तो है होठों से ,मगर मद्धम है ।

बंद कमरों को सुनाई नही जानेवाली ।

"राज " परेशां बहुत है ,तू परेशां ना हो

इन खुदाओं कि खुदाई नही जाने वाली

आज सडको पे चले जाओ ,तो दिल बहलेगा

चांद गजलों से ये तनहाई नही जाने वाली .






16 comments:

aawara pagal diwaana said...

अबे राज !!! मस्त लिखा बेटा !!! मैं अच्छी तरह से जानता हूँ ,तुम्हे इस बात का बहुत दूख हुआ ,जिस दिन तुने ये न्यूज़ पढा कि खुदा का बटवारा हो रहा है ...बहुत दुःखी हुआ ना तू ,क्या करू दोस्त मुझे भी तो बहुत बुरा लगा ,चल अच्छा किया ,तुने अपने दिल कि बात सब को ऑनलाइन सुना दी .....

Anonymous said...

राज भाई ,जैसे आपके पास छोटी राबिया जैसी बहन है ,वैसे मेरे पास भी एक प्यारी सी जीनत है ,एक मुजाफ्फर चाचा कि तरह चाचा भी है ,हम लोग भी बहुत प्यार से रहते है ...कुछ नही होगा राज ,हमारी मानसिकता कोई नही बदल सकता ,हम हिंदु मिस्लिम ,शिख,सब भाई है ,और भाई ही रहेंगे .कोई नही बदल सकता हमारी एकता को ...बहुत ही अच्छा लिखा राज भाई आपने ,बधाई ॥

Anonymous said...

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अनिल रघुराज said...

आप तो काफी अच्छा लिखते हैं राज। सब सियासतदानों का खेल है, वरना हमारे घरों-परिवारों मोहल्लों में कोई फासला नहीं है। हां, आपकी गजल बहुत अच्छी है।

Gyan Dutt Pandey said...

यह करो, यह न करो का धर्म नर्सरी स्कूल के बच्चों के लिये हो सकता है.
जो धर्म के महन्त सबको नर्सरी स्कूल का बच्चा मानें - वे मानवता का आदर नहीं करते. और यह दुर्गुण कम-ज्यादा हर धर्म के महन्तों में है.

डा० अमर कुमार said...

राज जी,
आपसे असहमत होने का प्रश्न ही नहीं है. यहां मैं एक बात का ज़िक्र करना चाहूंगा कि एक चीज़ हुआ करती है, 'सज़रा', यानि वंशावली, जिसकी डोर पकड़ कर ऊपर चढ़ते जायें तो इनकी ज़ड़ें वहीं मिलती हैं जहां यहूदी पनपे थे.
तलवार के जोर पर अधिकाधिक लोगों को इस्लाम कबू़ल करवाना उस दौर के कबाइलियों में होड़ का विषय बन गया था, किंतु अल्लाह ने न कोई 'बहीरा' ठहराया है, न 'साइबा',न कोई 'वसीला'और न ही कोई 'हाम'. इसलिए हे ईमान वालों जो ईमान लाये हो, अपनी चिंता करो, किसी दूसरे की पथभ्रष्टता से तुम्हारा कुछ नही बिगड़ता, यदि तुम स्वंय सीधे मार्ग पर हो
( सूरा ५ अल-माइदा, क़ुराने हदीस )
क्या आम मुसलमान नही जानता ? आपको जान कर आश्चर्य होगा ,नहीं ! क्यों कि कच्ची उम्र से ही बस आयतें रटाना शुरू कर दिया जाता है और वह यह भी नही जानते कि वह रट क्या रहे हैं. तो फ़तवा देना उनके लिये आसान रास्ता है अपने को आलिम फ़ाजिल साबित करने का क्योंकि एक साधारण मुसलमान के पास इन फ़तवों को गुनने की क्षमता ही नहीं विकसित होने दी गयी.
इसी हदीस के सूरा ३ आले-इमरान में फ़र्माया है, "तुममें से कुछ लोग ऎसे रहने चाहिये जो नेकी की ओर बुलायें,भलाई का हुक्म दें और बुराइयों से रोकते रहें. कहीं तुम भी उन लोगों में न हो जाना जो गिरोहों में बंट गये और इन खुली हिदायतों के बाद फ़िर अपने विभेदों में पड़ गये.ऎसे लोग 'उस दिन' कठोर दण्ड पायेंगे" .

अशिक्षा इसका मूल ज़ड़ है जो लोगों को जड़मति बनाये हुए है और फ़तवों पर राजनीती चलती रहेगी. हम भी तो अपवाद नहीं हैं वरना ये नंद वो आनंद फ़लाने मठाधीष ढिकाने गुरू, सिंघल तागड़िया के पीछे न चल पड़ते. तुरुप भी इन सब के पास है, 'आस्था में तर्क का स्थान नही है !'
स्वविवेक त्याग कर चरणकमल बंदौ सिर नाई गाओ, गाते गाते शेष हो जाओ, आर० ए० सी० से कन्फ़र्म टिकट पाओ . क्या मज़ाक चल रहा है !
ऎसे सवाल आप भविष्य में भी उठाते रहें यही आग्रह है .

Arvind Mishra said...

आप की सोच उम्दा है -परहित सरस धर्म नही भाई .

अनुनाद सिंह said...

समय की मांग है कि भारतीय दण्ड संहिता में एक धारा फतवा देने से सम्बन्धित जोड़ी जाय और इसे संगीन अपराध के रूप मे इसमे जगह मिले।


राज, आपका हिन्दी चिट्ठाकारी में स्वागत है!

रवीन्द्र प्रभात said...

आप की सोच उम्दा है, वेहद सुंदर और सारगर्भीत.राज भाई,बधाई.

Pramendra Pratap Singh said...

पहले तो बहुतै सार्थक लेख के बधाई स्‍वीकार करै, आपकै बात बिलकुलही जायज आहै।

अब आपके शियकत दूर कर देइत है, जैसन की आज कल हम एग्रीगेटर से बिलकुलही लेख नही पढ पाइत बा। और इ आपकै गलतफहमी बा कि हम आपके लेख पर टिप्‍पणी नही किये है। अपके टेक्‍नोरेटी के प्रोफाइल वाली पोस्‍ट पर पहली टिप्‍पणी हमरै है।

अब आप जब भी लिखिहै और हम आपके ब्‍लाग पर आऊब तो जरूर टिप्‍पणी करब।

वैसन आपका इलाहाबाद के एक एक चीज याद बा। :)

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया लिखा है।

Amitabh said...

are waah dear badee khabr rakhte ho Shalluu miyan ki ..... jati darmmajhab aajadi ke 60 saal baad bhi naheen badle......

Hidostan-ki-sar jameen pe uge kaaton ke traha jin se pareshaan to shab hain lekin inhen mitana koi naheen chahta....

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bahut badhiya andaze bayan hey aapka. padh ker khushi huwi.

Anonymous said...

Raj, what a thought provoking post. And such a beautiful Gazal.

Neeraj Rohilla said...

पता नहीं अब तक आपका चिट्ठा कैसे नजरों से बचा रहा । आप बहुत अच्छा लिखते हैं, अब तो आना लगा रहेगा आपके चिट्ठे पर,

साधुवाद स्वीकार करें ।