Saturday, September 15, 2007

क्या होता है ये प्यार -भाई बताओ ना !!!!!

अभी कुछ दिन पहले मैं अपने घर जौनपुर (यू.पी।) गया था ,एक बहुत ही अज्ज़ब सी सितुअशन आ गयी हमारे सामने ,मेरा एक छोटा भाई जो अभी ७ क्लास मे पढ़ाई कर रहा है ,मेरे पास आया ,और suddendly,पूछा ,"भैया ये प्यार क्या है "..मैंने कहा भाई जैसे आप हमे मिस करते हो ,मेरा ख़याल रखते हो ..यही सब तो प्यार है ,माँ का प्यार ,भाई का प्यार ,बाप का प्यार ...ना जाने क्या क्या उसको बताया ..समझाया ..लेकिन वो संतुस्थ नही हुआ ...उसने कहा भैया ये जो लड़के-लडकी प्यार करते है ,ये क्या है ,क्यों लोग किसी को इतना पसंद करने लगते है ,कि उसके लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार हो जाते हैं, जान भी देने मे कोई परहेज़ नही ......अब क्या बताओं उसको ,बाल मन !!! जो आवारा होता है ...मैंने कहा भाई अभी मुझे नींद आ रही है ,बाद में बताऊंगा आपको ..लेकिन सुच ये है कि नींद तो बहुत दूर हो गयी थी ना जाने क्यों ??
"हाय बेचारगी -ए -इश्क की उस महफिल में ।
सर झुकाए ना बने ,आंख उठाएँ ना बने" । ।

क्य होता है ये प्यार ,क्यों कोई किसी को इन्ना चाहने लगता है ,आख़िर क्यों??

बड़ी उम्मीदें थी कारे जहाँ मे इस दिल से मगर !
उसे तो तेरी तलब में खराब होना था ।

मैं सोचता रहा रात भर आख़िर ये कौन सा जज्ज्बा है ???????????????
यू तो इन्सान नए ज़मीन ,नए आस्मान की चाहत कर्ता है ,ये आरजू भी उसके लिए मुमकिन होती है । लेकिन !
जहाँ नयी कायनात उसके सामने आती है , उस जहाँ मे कदम रखते हुए काँप सा जाता हूँ । उसे एक अजीब stranger सी उलझन महसूस होती है । मुहब्बत भी कुछ ऐसे ही जज्बे का नाम है ,जहाँ हर रंग बदलने वाला होता है ,जहाँ आदमी सोचता कुछ और है ,और होता कुछ और है । किसी को दिल में बसा लेना ,फिर उसे अपने प्रेम-रूपी खयालों की अमराइयों में ढूद्ना , और रात दिन उसी के सपने देखना ,मसलन ! एक दुसरे का इंतजार , मिलने की बेचैनी ,जुदाई का गम ,ये खुसनशीबी की निशानियाँ बहुत कम खुश्नसीबो को मिलती हैं ।

"पहले इसमे एक अदा थी ,नाज़ था अंदाज़ था ।
रूठना अब तो मेरी आदत में शामिल हो गया ॥ "

हमारी चाहतें , हमारी मुहब्बतें , जो नामुमकिन दीवारो को तोड़कर एक हो जाती है , ऐसा मिलन एक मिशाल ही तो होता है .. जिसकी आगोश मे हमारी जिन्दगी क़ैद हो जाती है.अगर यह हमारे लिए सरफ़रोश है तो हमारा क़ैद होना उस मौसीकी की तरह होता है जिसे छेड़ कर दिल को अजीब सा सुकून मिलता है ...जिसे लफ़्ज़ों में नही बयाँ किया जा सकता , ....मगर जब वही क़ैद रिहाई बन जाती है तो जीना दुस्वार सा हो जाता है ,अपने महबूब अपनी मुहब्बत से बिछड़ जान एक दर्द भरा हादसा होता है ,इस हादसे की वज़ह चाहे जो भी हो मगर तड़पते सिर्फ दो दिल ही है ...बस यही है...
"वक़्त कितना खराब गुजरा है ।
लम्हा लम्हा अजाब गुज़रा है ,
रास्ते क्यों उदास लगते है ,
कौन खाना खराब गुज़रा है ,
जैसे सहरा से काफिला गुज़रे ,
यू इन आंखो से ख़्वाब गुज़रा है "। ।
अच्छा!!! अब रात काफी बीत चुकी है ,घडी ने अभी रात के २ बजाए है लिखता रहा तो ये प्रेम की परिभाषा खतम ही नही होगी क्यों की कागज़ कम पढ़ जाये ,स्याही खतम हो जाये पर भावनाएं तो कभी खतम नही हो सकती ,भावनाओं की लड़ी तो बनती ही जाती है ...खैर एक शेर अर्ज़ है ...
खुशबू जैसे वो मिले अफ़साने में ।
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में ,
शाम के साए उँगलियों से नापे है ,
चांद ने कीतनी देर लगा दी आने में,
दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है ,
किसकी आहट सुनता हूँ वीराने में ,
जाने किसका जीकर है इस अफ़साने में ,
दर्द मजे लेता है जो दोहराने में ॥

9 comments:

Udan Tashtari said...

सच है राज बाबू, प्यार की परिभाषा को कहाँ संभव हुआ है कभी भी शब्दों में बांधना. यह तो अहसास की बात है जैसे हवा, खुशबू आदि.

खुशबू जैसे वो मिले अफ़साने में ।
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में ,


बहुत सही!!
अच्छा लगा आपको पढ़ना. जारी रखें.

Ravi yadav said...

भाई साहब , बहुत बढियाँ लिखा है अपने।
प्यार के जज्बात को कितना गहराई और कितना अलौकीक ढंग से प्रस्तुत किया है ।
अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा ।

Reetesh Gupta said...

बढ़िया लिखा है ...अच्छा लगा पढ़कर ...बधाई

महावीर said...

पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। शेर-ओ-शायरी में भी मज़ा आगया।
अब जब यह सवाल आ ही गया है कि 'प्यार क्या है', तो इक़बाल साहब
का एक शेर याद आगयाः
"मुहब्बत क्या है?तासीरे मुहब्बत किस को कहते हैं ?
तेरा मजबूर कर देना, मेरा मजबूर हो जाना।"
पर छोटे भाई को यह समझा देनाः
"मुहब्बत शौक़ से कीजे मगर इक बात कहता हूं
हरेक खुश रंग पत्थर गौहर ओ नीलम नहीं होता ।

रवीन्द्र प्रभात said...

राज भाई,
सबसे पहले आपका आभार, मेरे ब्लॉग पर आने के लिए. आपके विचारों की ज़मीन वेहद ज़रखेज़ है, वधाई. मोहब्बत की गहरी अनुभूति पारिलक्षित हो रही है, एक शेर अर्ज़ किया है-
मोहब्बत यह उफ़नती सी नदी है जान लो तुम,
कि जिसमें डूबकर सबने दरद का साज़ पाया.

Anonymous said...

Wah raj bhai aap to mahan hai kya
blog banaya hai pyar ke mayane sikha diye humko....

isliye ab hum ek sher kahne ja rahein hai ..........

irshaad to bol do......

"rihaa daur-e-maa'zi ki yaadoN se ho kar
anis aaj likhte fasaane naye haiN !"

Anonymous said...

My Big Brother,
Very nice to read your post. I think you had written real life in emotions.......
But I think, you forget that sometime
we ruin our life by chasing our lovely dreams........
So live in real life..
thanks.......
Shashi

Anonymous said...

raaj bhai...bahut achha laga pad kar..

Lagta hai MIRZA sahab aap hi ko charge de kar gaye hai..koi baat nahi lage rahiye...

pata nahi kisne ye bhi kaha hai..haan par maine nahi kaha hai...

Jara Gour pharmaiye...

कभी फ़ुरसत हमको ना थी, कभी आप मश-रूफ़ थे.
बुडापे में सोचेंगे, हम जवानी में कितने बेबकूफ़ थे.

मिलना कोई क़यामत से कम नहीं होता पहले पहले इश्क़ में बुत्परस्ति का डर था, या बच्चपना, हम कितने नामाक़ूल थे.

लम्हे ना रुकते हैं, ना थमते हैं, बस गुज़रते हैं.
जिनकी खातिर जहाँ जीता, वो चले गये कितने दूर थे.

कहते हो शायर हो, इस शौक़ इस फ़न से क्यूं दिल ना जीता, विवेक ही जानते है की तब हम कितने बेइलम, कितने मन्कूब थे.

thnx for such a nice post.

RK Dubey..

राज यादव said...

रविश जी काफी अच्छा टोपिक चुना आपने ,ये "तुलना विश्लेषण का अनिवार्य अंग है। मगर पैमाना बनाते समय भी विश्लेषण होना चाहिए।" अच्छी लाईन लिखा आपने ,...आपका हमारे ब्लोग भी है वेलकम है जी ।

समीर जी,रितेश जी आपका बहुत बहुत धन्याद ,जो आप हमारे ब्लोग पे आ कर हमारा मान बढाया है ।
आदरणीय महावीर गुरुजी ,आप का विचार पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ,आप का आभार ।
रविंदर जी मोहब्बत यह उफ़नती सी नदी है जान लो तुम,
कि जिसमें डूबकर सबने दरद का साज़ पाया...काफी अच्छा कमेंट दिया आपने ,बहुत बहुत धन्यवाद ।
मनमोहन भाई ,अपनी भावान्याओं को व्यक्त करना सायद महानता में नही आता ,फिर भी आपका बहुत बहुत आभार ब्लोग पे आने का ।
छोटे भाई सशी ...आपका विचार भी अच्छा लगा पढ़कर ,रियल लाइफ .....हाहा हः
आर के जी ,सही कहा आपने ,मिर्ज़ा गालिब ने हमको ही चार्ज दिया है .धन्यवाद