ख़्वाब इस आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये
क़ब्र के सूखे हुये फूल उठा कर ले जाये
मुंतज़िर फूल में ख़ुश्बू की तरह हूँ कब से
कोई झोंकें की तरह आये उड़ा कर ले जाये
ये भी पानी है मगर आँखों का ऐसा पानी
जो हथेली पे रची मेहंदी उड़ा कर ले जाये
मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझ को
ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाये
ख़ाक इंसाफ़ है नाबीना बुतों के आगे
रात थाली में चिराग़ों को सजा कर ले जाये
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6 comments:
कोई बेवफाई न करे मुझसे ,देर आये दुरुस्त आये चुरा कर ले जाऐ
मजा आ गया आपकी पोस्ट से ।
Comments by: इटिप्स ब्लाग से Mukesh yadav
बशीर बद्र साहब की रचनाओं में गहराई है जो जानी पहचानी सी लगती है ।
मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझ को
ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाये..
bahut khubsurat likha hai.
नमश्कार यादव जी! मैं पिछले आधे घंटे से आपकी विभिन्न कविताएँ पढ़ रही हूँ और काफ़ी प्रभावित हुई हूँ| आपकी कविताओं में कुछ तो है जो दिल को छू जाता हैं| आप बस ऐसे ही लिखते रहे|
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